पुलिस की सूझबूझ और त्वरित कार्रवाई ने जिले में दोबारा बिसाहड़ा कांड़ जैसा माहौल बनने से बचा लिया
The prudence and quick action of the police in the Mehndi Hasan murder case saved an atmosphere like the Bisahada incident from happening again in the district.

Panchayat 24 : नोएडा के सेक्टर-49 कोतवाली क्षेत्र के अन्तर्गत स्थित बरौला गांव में हुए मेंहदी हसन हत्याकांड़ के बाद पुलिस की सूझबूझ और त्वरित कार्रवाई ने जिले में दोबारा बिसाहड़ा कांड़ जैसा माहौल बनने से बचा लिया। पुलिस ने मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए मुठभेड़ के बाद मेहंदी हसन हत्याकांड़ के आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। इस जघन्य हत्याकांड़ में लापरवाही बरतने वाले चौकी प्रभारी सहित पांच पुलिसकर्मियों को भी पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह के आदेश पर निलंबित कर दिया है। वहीं, मामले में विभागीय जांच के भी आदेश दिए गए। इस निर्मम हत्याकांड़ पर पुलिस कार्रवाई वाकई तारीफ के काबिल है।
क्या है मेहंदी हसन हत्याकांड़ ?
दरअसल, नोएडा जोन के सेक्टर-49 कोतवाली क्षेत्र के बरौला गांव में मूलरूप से बदायूं गांव निवासी मेहंदी हसन नामक एक व्यक्ति परिवार सहित रहता था। वह ई-रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण कर रहा था। बीती 20 जनवरी को बरौला गांव निवासी अनुज और उसके चचेरे भाई नितिन ने मेहंदी हसन की एक विवाद के चलते चाकू मारकर हत्या कर दी थी। दोनों आरोपियों ने शव को बाइक से बांधकर लगभग डेढ किमी तक घसीटा और चौकी पहुंचकर आत्मसमर्पण कर दिया था। मेहंदी हसन ने साल 2018 में अनुज के पिता पर चाकू से जानलेवा हमला किया था। आरोपियों ने इसी घटना का बदला लेने के लिए हत्याकांड़ को अंजाम दिया था।
घटना के राजनीतिकरण होने की बनी रही आशंका
नोएडा में हुए मेहंदी हसन हत्याकांड़ को जिस समय अंजाम दिया गया उस समय पूरा देश परआगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर चुनावी रंग चढ़ने लगा है। वहीं, अयोध्या में श्रीराम मंदिर उद्घाटन को लेकर भाजपा विरोधी राजनीतिक दल और संगठन भाजपा पर अल्पसंख्यकों की अनदेखी और बहुसंख्यक वर्ग के तुष्टिकरण के आरोप लगा रहे है। इस अपराधिक घटना की आड़ में राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति नहीं करेंगे, इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है। सूत्रों की माने तो पुलिस के आला अधिकारी भी मेहंदी हसन हत्याकांड़ के रूप में बरौला गांव में घटी घटना के राजनीतिकरण किए जाने की आशंका से चिंतित थे। देश की राजधानी और नोएडा जैसे हाईटेक शहर में होने के कारण यह घटना एक बड़ा मुद्दा बन सकती थी। राजनीतिक लाभ के लिए इस घटना के सहारे अल्पसंख्यकों की भावनाओं को भड़काने के भी प्रयास किए जा सकते थे। लेकिन पुलिस ने बिना किसी दबाव में आए सही मायने में इस घटना का एक अपराधिक घटना की तरह समाधान किया। पुलिस कार्रवाई से पीडित पक्ष भी संतुष्ट दिखा।
क्या था बिसाहड़ा कांड़ :
दरअसल, साल 28 सितंबर 2015 को जारचा कोतवाली क्षेत्र के बिसाहड़ा गांव में भीड़ ने अकलाख नामक व्यक्ति के घर पर हमला कर दिया था। इस घटना में अकलाख, उसका बेटा और परिवार की महिलाएं घायल हो गई थी। उपचार के दौरान अकलाख की मौत हो गई थी। वहीं, बेटे को गंभीर चोटें आई थी। इस घटना की तपिश दूसरे देशों तक महसूस हुई। इस घटना को लेकर भारत में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए गए। लंबे समय तक यह घटना देश की राजनीति का केन्द्र बनी रही।
अचानक क्यों चर्चा में आ गया था बिसाहड़ा ?
दरअसल, साल 2014 में देश मेंं कई दशकों बाद देश में पूर्ण बहुमत वाली दक्षिण पंथी विचारधारा वाली सरकार केन्द्र की सत्ता में आई थी। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर धर्म की राजनीति करने और अल्पसंख्यक विरोधी होने के आरोप लग रहे थे। इसी दौरान बिसाहड़ा गांव में अपराधिक घटना के रूप में अकलाख हत्याकांड हो गया। विरोधी दलों ने इस घटना के लिए केन्द्र सरकार की नीतियों और हिन्दुत्ववादी भावनाओं के उभार को मुख्य कारण बताया। उत्तर प्रदेश में तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने भी इस घटना को एक अपराधिक घटना की तरह संभालने के स्थान पर राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप में अधिक रूचि दिखाई। घटना का पूरी तरह राजनीतिकरण हो गया। मीडिया के एक धड़े ने भी इस घटना को अपराधिक घटना से राजनीतिक घटना बनाने में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग किया। देश में मुस्लिम राजनीति के तथाकथित प्रतिनिधि असादु्दीन औवेसी सबसे पहले बिसाहड़ा पहुंचे और पीडित परिवार से मुलाकात की। उन्होंने पीडित परिवार की कोई मदद तो नहीं की लेकिन राजनीति से ओतप्रोत बयान अवश्य दिए। बिसाहड़ा के प्रति राजनीतिक दलों के मन में चुंबकीय आकर्षण पैदा हो गया। भाजपा विरोधी दलों के नेता एक के बाद एक बिसाहड़ा पहुंचने लगे। इनमें तत्कालीन बसपा के वरिष्ठ नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी, भाजपा विरोधी बड़ा चेहरा सुरेन्द्र सिंह नागर और कांठ के तत्कालीन विधायक बिसाहड़ा पहुंचे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सहित कई वरिष्ठ आम आमदी पार्टी के नेता भी बिसाहड़ा पहुंचे। इस कड़े में सबसे बड़ा नाम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का रहा। राहुल गांधी ने घटना के कई दिन बाद बिसाहड़ा पहुंचकर पीडित परिवार से मुलाकात की। कई इस्लामिक संगठन भी बिसाहड़ा पहुंचे। सभी दलों ने इस घटना के लिए भाजपा को जिम्मेवार ठहराया। इसके विपरीत भाजपा नेता संगीत सोम सहित कई हिन्दुवादी नेता बिसाहड़ा पहुंचे। परिणामस्वरूप मामला एक अपराधिक घटना से राजनीतिक घटना में बदल गया।
बिसाहड़ा घटना के शुरूआती चरण में पुलिस से हुई चूक
बिसाहड़ा में अकलाख हत्याकांड़ के बाद सारा घटनाक्रम इतनी तेजी से बदला कि पुलिस प्रशासन असहाय दिखा। पुलिस से मामले में कई प्रारंभिक चूक हुई। तत्कालीन एसएसपी के हाथ से मामला फिसलता दिखा। कार्रवाई करने में पुलिस ने काफी समय गंवा दिया। मामले के राजनीतिकरण होने के पीछे यह भी एक कारण रहा। आरोपियों पर त्वरित कार्रवाई का अभाव दिखा। अंत में तत्कालीन जिलाधिकारी एन पी सिंह ने पूरे मामले को अपने हाथों में ले लिया। सीओ दादरी अनुराग सिंह के सहयोग से उन्होंने बिसाहड़ा कांड़ को सामान्य किया। बिसाहड़ा में किसी भी राजनीतिक दल के नेता के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। हालांकि बाद में पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई पर भी सवाल उठे।
अकलाख और मेहंदी हसन हत्याकांड़ की समान्ताएं
नोएडा के बरौला गांव में हुई मेहंदी हसन हत्याकांड़ और 8 साल पूर्व दादरी के बिसाहड़ा गांव में हुए अकलाख हत्याकांड़ में कई तरह की समानताएं हैं। दोनों घटनाओं में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक वर्ग के लोग शामिल हैं। पीडित पक्ष अल्पसंख्यक वर्ग से संबंधित है। दोनों घटनाओं के समय राजनीतिक माहौल चरम पर है। अकलाख हत्याकांड़ के समय केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पर विरोधियों ने अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाया।। वहीं, मेहंदी हसन हत्याकांड के समय अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर के उद्घाटन को लेकर विरोधी नरेन्द्र मोदी सरकारपर अल्पसंख्यकों की अनदेखी करने के आरोप लगा रही है। यहीं कुछ ऐसे कारण रहे जिसके चलते पुलिस के आला अधिकारियों और सरकार के गुप्तचर विभाग के लोगों को बरौला की घटना में बिसाहड़ा नजर आने लगा था।
बिसाहड़ा की घटना को लेकर आतंकवादियों ने दी थी धमकी
बिसाहड़ा में अकलाख हत्याकांड़ को लेकर कई बार आतंकवादियों और इस्लामिक दहशतगर्दों ने भारत को धमकी दी थी। केरल के मल्लापुरम में पुलिस ने कुछ संदिग्धों को पकड़ा था। इनके पास से पुलिस को कुछ दस्तावेज और सामान बरामद हुआ था। इन दस्तावेजों में बिसाहड़ा में अकलाख हत्याकांड़ का बदला लेने की बात कही गई थी।
प्रदेश की लीडरशिप का बड़ा अंतर
बिसाहड़ा और बरौला में हुई घटनाओं में सबसे बड़ा अंतर उत्तर प्रदेश की लीडरशिप का रहा था। बिसाहड़ा की घटना को लेकर जहां तत्कालीन अखिलेश यादव की सरकार लॉ एण्ड ऑर्डर की जिम्मेवारी को लेने से बचती दिखी। पूरे घटनाक्रम के लिए प्रदेश सरकार ने केन्द्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया जबकि लॉ एण्ड ऑर्डर राज्य सरकार का विषय होता है। इसका असर पुलिस की कार्यशैली पर भी दिखा। वहीं, बरौला की घटना के समय प्रदेश की बागड़ोर योगी आदित्यनाथ के हाथ में है। उन्होंने शुरूआत से ही पुलिस को अपराध के खिलाफ खुलकर खेलने की छूट दी है। इसका असर बरौला घटना पर दिखा। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए जिम्मेवार पुलिस वालों तक पर भी कार्रवाई की है।