शारदा विश्विद्यालय की घटना : नैतिक दायित्वों से विमुख शिक्षण संस्थानों के लिए मुनाफा देने वाले उत्पाद बन गए हैं छात्र ?
Sharda University incident: Have students become a profit-making product for educational institutions bereft of moral responsibilities?

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchahyat 24 : ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा विश्वविद्यालय में बीडीएस द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही ज्योति नाम छात्रा ने आत्महत्या कर ली। यह वाकई एक दुखद घटना है। हालांकि आत्महत्या के पीछे के वास्तविक कारणों का निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन छात्रा के सुसाइड नोट में स्पष्ट लिखा है कि दो अध्यापक उसका लगातार मानसिक शोषण और अपमान कर रहे थे। इस घटना ने भारी भरकम फीस लेकर शिक्षा बेच रहे संस्थानों पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। शिक्षण संस्थानों द्वारा शिक्षा का व्यापार करके मुनाफाखोरी करने वाली बहस को हवा दे दी है।
शारदा विश्वविद्यालय की ग्रेटर नोएडा के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में होती है। लगभग हर छात्र का सपना होता है कि शारदा विश्वविद्यालय में उसको आगे की पढ़ाई का अवसर मिले। महंगी शिक्षा के कारण बहुत सारे होनहार छात्रों को सपना पूरा करने का अवसर नहीं मिल पाता है। प्रवेश पाने वाले छात्रों के सामने सफलता की दौड़ में शामिल होने के अतिरिक्त कोई विकल्प भी शेष नहीं बचता है। उनके ऊपर सुनहरे भविष्य और अपने परिजनों की उम्मीदों का भारी दबाव होता है। असफलता का विचार मात्र ही इन छात्रों के लिए मौत से कम नहीं होता है ? ऐसे में शिक्षण संस्थान का असहयोगात्मक रवैया छात्रों के लिए बहुत ही पीड़ादायक होता है। शारदा विश्ववविद्यालय में घटी घटना के मामले में छात्रा के सुसाइड नोट में विश्वविद्यालय प्रबंधन एवं शिक्षकों की कुछ ऐसी ही भूमिका की ओर समाज का ध्यान खींचा है।
घटना के बाद की वीडियो सोशल मीडिया पर पूरे दिन वायरल होती रही। वीडियों में जिस तरह से परिजन और छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रबंधन और अध्यापकों के बारे में बताया, वह वाकई में स्तब्ध करने वाला है। मौके पर मौजूद पुलिस द्वारा छात्रों पर बल प्रयोग किया गया, यह भी कतई उचित नहीं है। पुलिस को इस तरह के हालात से निपटने के लिए पेशेवर तरीके से तैयार किया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें इस तरह के तौर तरीके सिखाए जाते हैं। जिस तरह से छात्रों पर बल प्रयोग करने वाली वीडियो सामने आई हैं, उनमें पुलिस का पेशेवर अंदाज पूरी तरह से गायब था।
इस घटना के बाद सवाल उठता है क्या छात्र कोई निर्जीव वस्तु है जिनसे मनचाहा परिणाम प्राप्त किया जा सकता है ? क्या शारदा विश्वविद्यालय तय कर चुका है कि उसके द्वारा तय किए गए स्वरूप को छात्रों को स्वीकार करना ही होगा ? विश्वविद्याल में पढ़ने वाले छात्र इतने परिपक्व हो चुके होते हैं कि वह बहुत हद तक हालातों का सामना कर सकते हैं। इसके बावजूद यदि कोई छात्र आत्महत्या करने का निर्णय करता है तो वह सामान्य हालात कतई नहीं रहे होंगे। सवाल यह भी उठता है क्या ऐसे हालात एकाएक ही उत्पन्न हो गए है अथवा छात्रों से जुड़े मामलों पर शारदा विश्वविद्यालय ने मौन साधे रखा। अहम सवाल यह भी है कि शिक्षण संस्थानों के लिए छात्र केवल मुनाफा कमाने वाले उत्पाद बनकर रह गए हैं जिनके प्रति शिक्षण संस्थानों का कोई नैतिक दायित्व नहीं रह गया है ? वैसे भी ग्रेटर नोएडा में शारदा विश्वविद्यालय छात्रों से जुड़े विषयों को लेकर खबरों में बना रहता है।