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आमका गांव की घटना : सही और गलत का सवाल हुआ बेईमानी, परिणाम तय करेगा प्राधिकरण की कार्रवाई की दिशा

Amka village incident: The question of right and wrong became dishonesty, the result will decide the direction of action of the authority

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 : मेरी पूर्व की पोस्ट ‘ ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अतिक्रमण विरोधी अभियान में आई तेजी, फिर भी अंदर और बाहर से चुनौतियां कम नहीं ‘ नामक खबर लिखने के दौरान सूचना मिली कि आमका गांव में खसरा संख्या 204, 205 और 206 एक बसाई जा रही अवैध कॉलोनी पर बुलडोज़र कार्रवाई करने पहुंची प्राधिकरण की टीम के साथ भारतीय किसान संगठन (बलराज गुट) के कार्यकर्ताओं और कुछ भूमाफियाओं ने अभद्रता, घेराबंदी, हाथपाई और गाड़ी से टक्कर मारने का प्रयास किया। पुलिस की मौजूदगी में पूरी घटना घाटी।

घटना को लेकर भारतीय किसान यूनियन (बलराज गुट) ने भी अपना पक्ष रखते हुए प्राधिकरण दस्ते द्वारा लगातार की जा रही कार्रवाई पर भ्रष्टाचार और लोगों को परेशान करने का आरोप लगाया है। संगठन ने 29 जून (रविवार) को आपातकालीन बैठक कैमराला गांव में भी बुलाई है। वहीं प्राधिकरण के सीईओ एनजी रवि कुमार के हस्तक्षेप के बाद पुलिस ने सुसंगत धाराओं में तीन लोगों को नाम दर्ज करते हुए लगभग 150 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है।

घटना के बाद प्राधिकरण द्वारा 20 जुलाई तक चलाए जाने वाले अतिक्रमण विरोधी अभियान के जारी रहने पर भी अशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं। चर्चा है कि मामले के तार सत्ताधारी दल से जुड़ रहे है। यदि ऐसा है तो माना जाए कि सरकारी आदेशों के पालन में सरकार से जुड़े लोग ही बड़ी बाधा बन रहे हैं ? पूरे घटनाक्रम में किसान संगठन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई किसान संगठन किसी अवैध कॉलोनी पर होने वाली कार्रवाई के विरोध में मैदान में उतरा है।

आमका गांव मे जहाँ प्राधिकरण की टीम कार्रवाई करने पहुंची, वह आबादी का हिस्सा नहीं है। निजी मुनाफे के लिए कॉलोनी काटी जा रही है। किसी किसान संगठन का अवैध कॉलोनी के पक्ष में खड़ा होना आश्‍चर्यजनक लगता है। क्या किसान संगठन का यह कदम किसान संगठन और भूमाफियाओं के गठजोड़ की ओर इशारा करता है ? कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि कॉलोनाइज़र और भूमाफियाओं ने किसान संगठन के लोगों को बुलाया था।

किसान संगठनों का चाल और चरित्र भी गौतम बुद्ध नगर में बहुत बदल गया कि। किसान हितों की लड़ाई लड़ने वाले किसान संगठनों से जुड़े लोग नेता बन गए। किसान संगठनों के अगवाकर्ताओं के नाम की प्राधिकरणों में तूती बोलने लगी। वहीं वास्तविक किसान आज भी परेशान है। किसान नेता बनने का आकर्षण ही है कि तेजी से किसान संगठनों में युवा शामिल हो रहे हैं। मानों अन्‍य पेशों की तरह किसान संगठनों की राजनीति भी करियर ओरिएंटिड हो गई है। यही कारण है कि किसान संगठनों कि जिले में बाढ़ सी आ गई है।

प्राधिकरण के अधिकारी कहते है कि किसान संगठन और किसान नेता आम किसान के नाम पर निजी हितों की सिद्धि के लिए दबाव बनाते हैं। यदि यह मान भी लिया जाए तो भी सवाल उठता है कि कुछ किसान नेता ऐसा कर रहे हैं तो उन्हें पैदा किसने किया है। तीन दशकों से किसान अपनी फरियाद और समयाएं लेकर प्राधिकरण आ रहा है। प्राधिकरानों में उन्हें दोनों हाथों से लूटा गया है। किसान आंदोलनो को निष्क्रिय करने के लिए आंदोलनों से जुड़े कुछ लोगों को अंदर खाने अपने पक्ष में करके आंदोलनों को समाप्त करने की साजिशें भी प्राधिकरणों में रची गई।

किसानों की समस्या हल करने की अपेक्षा अधिकारियों ने चंद चुनिंदा लोगों को संतुष्ट और तुष्‍ट करने तथा आम किसान की लूट की नीति अपनाई। आज यह नीति प्राधिकरण को भारी पड़ रही है। तेजी से अस्तित्व में आ रहे किसान संगठन प्राधिकरण की इस नीति से ही प्रभावित दिख रहे हैं। वैसे भी इतिहास गवाह है कि दूसरों का अहित करके अपना हित करने के लिए खड़े किए गए लोग अंत में स्वयं पर ही भारी पड़ते हैं। यदि प्राधिकरण ने आम किसान के हित में कार्य किया होता तो आज यह नौबत ही नहीं आती।

सत्ता पक्ष से जुड़े हुए लोगों का इस प्रकरण में शामिल होने की चर्चा इशारा कर रही है कि भूमाफियाओं को इनका सरंक्षण मिल रहा है। देर सवेर इनकी कारगुजारियों के छिंटे सरकार की छवि पर भी पड़ेंगे। विपक्ष के नेता भी कहीं न कहीं इस अवैध धंधे से जुड़े है अथवा अपनी सरकारों में इस तरह के लाभ प्राप्त करते रहे थे। यही कारण है कि विपक्ष अतिक्रमण और अवैध निर्माण के मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं ।

आमका गांव की घटना में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। पुलिस पूरे प्रकारण में रक्षात्मक मुद्रा में है। संगठित माफियाओं की कमर तोड़ने वाली गौतम बुद्ध नगर पुलिस अतिक्रमण और अवैध निर्माण में मामले में पल्‍ला झाड़ती दिखाई दे रही है। प्रतीत होता है कि पुलिस इस मुद्दे को अतिरिक्त बोझ मान बैठी है। हालांकि हर चौकी, कोतवाली और वरिष्ठ अधिकारियों के पास बड़ी संख्या में ऐसे लोग अपनी फरियाद लेकर पहुँचते हैं कि भूमाफियाओं ने उन्हें धोखाधडी से प्राधिकरण की जमीन बेच दी है।

वहीं लगता है प्राधिकरण भी भूमाफियाओं और अवैध निर्माण और अतिक्रमण करने वालों के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखता है। शायद यही कारण है कि प्राधिकरण भी यही चाहता कि अवैध निर्माण और अतिक्रमण में शामिल लोगों के नाम उजागर न हों। प्राधिकरण द्वारा जारी प्रेस नोट इसका जीता जागता उदाहरण है। इस जिले में प्राधिकरणों ने खूनी संघर्ष भी देखे हैं। अनुभव बताता है की कोई किसान आंदोलन को रक्तरंजित करना नहीं चाहता है। उकसावे और भ्रमित किए जाने पर आंदोलन में हिंसा होती है। ऐसे में अतिक्रमण विरोधी दस्ते में शामिल सदस्यों की सुरक्षा से जुड़ा सवाल भी चिंता का विषय है।

सरकार और प्राधिकरण को घोड़ी बछेडा और भट्टा परसौल के खुनी आंदोलनों से सीख लेकर अच्छे से समस्या का उपचार करना चाहिए। किसान की आड़ में बहुत से किसान संगठन, प्राधिकरण के अधिकार एवं कर्मचारी, किसान नेता, सत्ता और विपक्ष के दलीय नेता और भूमाफिया, सभी लूट की व्यवस्था में अपना ज्यादा से ज्यादा हिस्सा तय करने में लगे हैं। ऐसे में अतिक्रमण और अवैध निर्माण विरोधी कार्रवाई का सही अथवा गलत होना यहाँ अप्रासंगिक हो गया है। अंतत: परिणाम ही गलत और गलत का निर्णय करेगा।

यदि निकट भविष्य में भी प्राधिकरण की कार्रवाई जारी रहती है तो आज भूमाफियाओं और पर्दे के पीछे खेल कर रहे सफ़ेदपोशों को सरकार और प्राधिकरण द्वारा संदेश साफ दिया जाना चाहिए। यदि कार्रवाई यहीं रूक जाती है तो प्राधिकरण और सरकार की राजनीतिक मजबूरियाँ समझी जा सकती हैं। हालांकि प्राधिकरण को इस बात पर भी विचार करना चाहिए, क्या वह अतिक्रमण और अवैध निर्माण विरोधी कार्रवाई को पूरी ईमानदारी से लागू कराने कि स्थिति में है ? यदि हाँ, ती कार्रवाई को मजबूती से आगे बढ़ाएं। या फिर मुँह देखकर ही कार्रवाई होगी ? यदि ऐसा है तो स्‍पष्‍ट है कि प्रभावित किसानों की समस्‍याओं के समाधान के लिए प्राधिकरण के पास नैतिक बल का अभाव है। बेहतर होगा कार्रवाई के लिए प्राधिकरण पहले नैतिक बल जुटाए।

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