ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण : सीईओ रवि एनजी का कार्यकाल सराहनीय, फिर भी समस्याएं अपार, असल समस्या कहां ?
Greater Noida Authority: CEO Ravi NG's tenure is commendable, yet problems are numerous, where is the real problem?

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण : सीईओ रवि कुमार एनजी के एक वर्षीय कार्यकाल पर एक रिपोर्ट
Panchayat 24 :
लगभग अनाथ हो गए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी बनकर आए रवि कुमार एनजी की एक वर्ष की क्या उपलब्धियां हैं? क्या इस एक वर्ष में ग्रेटर नोएडा की दिशा और दशा में कोई सकारात्मक परिवर्तन आया है या यह और भी पिछड़ गया है? लोगों की मुख्य कार्यपालक अधिकारी तक सीधी पहुंच और उलझे हुए प्राधिकरण के मसलों को एक एक कर सुलझाने की दिशा में हो रहे कार्यों को देखते हुए आम जनमानस में प्राधिकरण की छवि बदल तो रही है।
1991 में अस्तित्व में आया ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पिछले पांच वर्षों में अपने सर्वाधिक बुरे समय से गुजरा है। किसानों की मौलिक समस्याओं से जूझ रहे प्राधिकरण को कोरोना महामारी से और भी चोट पहुंची जब सारा कामकाज ही ठप्प हो गया। पूर्व सीईओ नरेंद्र भूषण के जाने के बाद लगभग एक वर्ष तक प्राधिकरण को कोई नियमित सीईओ ही नहीं मिला।मेरठ के मंडलायुक्त सुरेन्द्र कुमार कुछ माह तक अतिरिक्त कार्यभार संभालने के बाद केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गए तो नोएडा प्राधिकरण की पूर्णकालिक सीईओ श्रीमती रितु माहेश्वरी भी अतिरिक्त प्रभार के तौर पर इस प्राधिकरण पर विशेष ध्यान नहीं दे सकीं।
पिछले वर्ष छः जुलाई को पूर्णकालिक सीईओ के तौर पर नियुक्त हुए रवि कुमार एनजी के लिए यह पद कांटों का ताज पहनने सरीखा था। उनके समक्ष सिर्फ और सिर्फ समस्याओं का अंबार था। प्राधिकरण के दरवाजे पर पिछले तीन महीने से किसानों ने घेरा डाल रखा था। उन्होंने सबसे पहले किसानों को भरोसे में लेकर उनकी उचित मांगों पर तत्काल कार्रवाई शुरू कराते हुए उनके धरने को समाप्त कराया।आमजन के लिए बंद प्राधिकरण के दरवाजे खोल दिए गए। स्वयं मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने दिनभर अपनी समस्याएं लेकर आने वाले आम और खास लोगों से मिलना शुरू किया। उनकी समस्याओं पर प्रभावी कार्रवाई शुरू कराई। इसके साथ ही गांव गांव शिविर लगाकर किसानों से संबंधित समस्याओं का निस्तारण शुरू किया।
पिछले सात वर्षों से बिना टेंडर चली आ रही सफाई व्यवस्था को वापस ढर्रे पर लाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। ग्रेटर नोएडा वेस्ट में बारह वर्षों से गंगाजल पहुंचाने की लंबित पड़ी योजना को लागू कराने की दिशा में काम शुरू हुआ। प्राधिकरण को कर्ज मुक्त तथा लाभ की ओर अग्रसर करने की दिशा में ठोस उपाय शुरू किए गए, परंतु प्राधिकरण से कुछ लोग फिर भी असंतुष्ट क्यों हैं? प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र के अनुपात में प्राधिकरण के पास अधिकारी कर्मचारियों की चौथाई संख्या भी नहीं है।भूलेख विभाग एकमात्र लेखपाल के भरोसे चल रहा है। परियोजना विभाग में एक एक वरिष्ठ प्रबंधक को कई कई वर्क सर्किलों का काम देखना पड़ रहा है।
अधिकारियों की कमी से उनपर नियंत्रण रखना असम्भव हो रहा है तो कर्मचारियों की कमी से कार्यों की पूर्ति प्रभावित हो रही है। राज्य सरकार से न और अधिकारी मिल रहे हैं और न ही नई नियुक्ति की जा रही हैं। पिछले कुछ मुख्य कार्यपालक अधिकारियों के मुंहलगे दलाल सरीखे लोग अपनी दुर्दशा के कारण भी असंतुष्ट होकर प्राधिकरण के विरुद्ध एजेंडा चला रहे हैं।ऐसी परिस्थितियों में भी यदि प्राधिकरण कुछ अच्छा कर पा रहा है तो इसका श्रेय मुख्य कार्यपालक अधिकारी के अलावा और किसे दिया जा सकता है।
लेखक : राजेश बैरागी, वरिष्ठ पत्रकार