संगठन के भरोसे को डॉ महेश शर्मा ने अपने रणनीतिक कौशल, क्षमता और चुनावी प्रबंधन से जीत में किया तब्दील
Dr Mahesh Sharma converted the trust of the organization into victory with his strategic skills, ability and election management

Panchayat 24 : गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट पर भाजपा उम्मीदवार डॉ महेश शर्मा को मिली प्रचंड एवं एतिहासिक जीत में वैसे तो कई महत्वपूर्ण कारक हैं। इनमें डॉ महेश शर्मा पर संगठन का भरोसा और उनका रणनीतिक कौशल, क्षमता और चुनावी प्रबंधन का बहुत बड़ा योगदान हैं। यदि चुनावी समझ और रणनीतिक कौशल ऐसे अहम बिन्दु हैं जिन्होंने भाजपा उम्मीदवार और विपक्षी दलों के उम्मीदवारों के बीच बहुत बड़ा अंतर पैदा कर दिया। इससे भाजपा विरोधी चुनाव के अंत तक पार नहीं पा सके।
दरअसल, चुनावी राजनीति में अन्य दावेदारोंं की तरह डॉ महेश शर्मा ने विरोधी दलों के आरोप प्रत्यारोपों के साथ पार्टी के अंदर से पार्टी के दूसरे दावेदारों के साथ टिकट के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़। अंतत: पार्टी ने डॉ महेश शर्मा पर अपना भरोसा जताते हुए उम्मीदवारों के नामों की पहली सूची में ही उनके नाम की घोषणा कर दी थी। इसके बाद डॉ महेश शर्मा के ऊपर जिम्मेवारी थी कि वह पार्टी और संगठन के भरोसे पर खरा उतरें। डॉ महेश शर्मा इसके लिए खुद को पूरी तरह तैयार करके रखे हुए थे। उन्होंने सबसे पहले पार्टी के अंदर चल रही गुटबाजी को शांत करने के लिए बड़ा कदम उठाया। वह जानते थे कि चुनाव में विरोधी से लड़ने से पूर्व अपने घर के अंदर के मनमुटाव को पूरी तरह शांत किया जाए। जब पार्टी ने उनके नाम की घोषणा की थी, वह दो से तीन बार लोगों के बीच पहुंचकर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी और पार्टी की उपलब्धियों के बारे में बता चुके थे। ऐसे कार्यक्रम के माध्यम से उन्होंने जनता से संवाद करने का मौका मिला।
चुनाव प्रचार के लिए उन्होंने जिले के माहौल को देखते हुए पार्टी और संगठन के प्रभावशाली नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए बुलाया। जहां विपक्षी दलों के उम्मीदवार पूरी तरह से लोकसभा की पांचों विधानसभाओं में अपना मतदाताओं से जनसंपर्क नहीं कर सके। वहीं, डॉ महेश शर्मा इस दिशा में काफी आगे निकल गए। पार्टी कार्यकर्ताओं और संगठन के पदाधिकारियों से बेहतर तालमेल स्थापित कर लगातार संवाद किया। चुनाव संचालन के लिए एक अनुभवी टीम का गठन किया। नाराज लोगों से संवाद कर संतुष्ट किया। चुनाव से पूर्व मतदाताओं तक उनकी चुनावी पर्ची पहुंचाई गई। इसके लिए बाकायदा अलग अलग टीमों को जिम्मेवारियों सौंपी गई। मतदान के लिए हर वर्ग के प्रभावशाली लोगों से संवाद किया गया। चुनाव के दिन इस बात की पूरी व्यवस्था की गई कि अधिक से अधिक मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक पहुंचाया जा सके। पार्टी एवं संगठन के समानान्तर अनुभवी टीमों को परिस्थितियों के अनुसार काम पर लगाया। इसका परिणाम 4 जून को प्रचंड जीत के रूप में सामने आया।