उत्तर प्रदेश

आरएलडी एनडीए में होगी शामिल ? : आरएलडी का सीटों का टोटा होगा खत्‍म, भाजपा को क्‍या मिलेगा ? जानिए पूरा विश्‍लेषण

Will RLD join NDA? : RLD's shortage of seats will end, what will BJP get? Know the complete analysis

Panchayat 24 : आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर गुणा भाग में जुट गए हैं। उत्‍तर प्रदेश में एनडीए और इंडिया गठबंंधन को को मजबूत बनाने के लिए भाजपा और समाजवादी पार्टी एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं। उत्‍तर प्रदेश में इसकी शुरूआत सबसे पहले समाजवादी पार्टी की ओर से हो गई है। समाजवादी पार्टी ने पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश की 27 सीटों को साधने के लिए आरएलडी के साथ गठबंधन किया है। गठबंधन में आरएलीडी को सात सीटें मिली हैं। इसके बाद प्रतीत होने लगा कि पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में आरएलडी और समाजवादी पार्टी के बीच हुए गठबंधन के बाद इंडिया गठबंधन बढ़त बना रहा है। लेकिन आरएलडी के एनडीए में शामिल होने की खबरें पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में बन रहे नए राजनीतिक समीकरणों की ओर इशारा कर रही हैं। जयंत चौधरी द्वारा एक्‍स पर की गई पोस्‍ट से इस बारे में आभाष होने लगा था।

पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण 

पश्मिी उत्‍तर प्रदेश जाट एवं मुस्लिम बाहुल्‍य क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में लोकसभा की 27 सीटें आती हैं। जाटों की 18 प्रतिशत आबादी इस क्षेत्र की कई सीटों पर प्रत्‍यक्ष रूप से और कई सीटों पर अप्रत्‍यक्ष रूप से प्रभावित करती है। आरएलडी को पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में जाटों का प्रतिनिधि माना जाता रहा है। हालांकि साल 2014 के बाद यह मिथक टूटा है। साल 2014 में मोदी लहर में आरएलडी की झोली खाली रही थी। वहीं साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में जिस गठबंधन में आरएलडी शामिल हुए थी, उसको जरूर पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश की कुछ सीटों पर जीत मिली थी। आरएलडी को इस चुनाव में भी निराशा ही हाथ लगी थी।

इंडिया गठबंधन में आरएलडी क्‍यों असहज महसूस कर रही है ?

उत्‍तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन में सबसे पहले समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच सीट शेयरिंग हुई। पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में आरएलडी को सात सीटें मिली थी। माना जा रहा था कि देर सवेर कांग्रेस भी इंडिया गठबंधन का हिस्‍सा बन जाएगी। ऐसे में पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश की कुछ सीटें कांग्रेस को भी दी जा सकती हैं। आरएलडी-समाजवादी पार्टी के गठबंधन के कुछ दिन बाद से ही सूचनाएं बाहर आने लगी कि दोनों दलों के बीच सबकुछ ठीक ठाक नहीं है। इसका मुख्‍य कारण समाजवादी पार्टी द्वार आरएलडी को दी गई सात में से तीन सीटों पर आरएलडी के सिंबल पर अपने प्रत्‍याशी उतारे जाने की शर्त रखना है।

दरअसल, आरएलडी समाजवादी पार्टी गठबंधन के बाद आरएलडी के खाते में बागपत, कैराना, बिजनौर, मथुरा, मुजफ्फरनगर और हाथरस पर पक्‍की मुहर लग चुकी है। दो सीटों को लेकर अभी संशय बरकरार है। ऐसे में समाजवादी पार्टी ने बिजनौर, मुजफ्फरनगर और कैराना पर अपने उम्‍मीदवार आरएलडी सिंबल पर लड़ाना चाहती है। सबसे अधिक पेंच मुजफ्फरनगर सीट को लेकर है। जानकारों की माने तो समाजवादी पार्टी यहां से हर हाल में हरेन्‍द्र मलिक को चुनाव लड़ाना चाहती है। भले ही सिंबल आरएलडी का हो। समाजवादी पार्टी की शर्तों पर गठबंधन में बने रहना असहज महसूस हो रहा है। बागपत और मुजफ्फरनगर सीट को आरएलडी अपने पुश्‍तैनी सीट मानती है। ऐसे में मुजफ्फरनगर पर समाजवादी पार्टी की शर्ते आरएलडी को कतई स्‍वीकार नहीं हैं। हरेन्‍द्र मलिक का इस सीट पर आरएलडी कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता इस सीट से चौधरी परिवार अथवा पार्टी के किसी भरोसेमंद को चुनाव लड़ाना चाहती है।

एनडीए में जाने पर आरएलडी को मिलेगा फायदा ?

साल 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आरएलडी का खाता तक नहीं खुल सका था। आरएलडी की पुश्‍तैनी सीट मानी जाने वाली सीटें बागपत और मुजफ्फरनगर भाजपा की झोली में गई थी। बागपत सीट पर जयंत चौधरी को  डॉ सत्‍यपाल मलिक और मुजफ्फरनगर सीट से डॉ संजीव बालियान ने चौधरी अजीत सिंह को चुनाव हरा दिया था। वहीं, राममंदिर निर्माण के बाद पूरे देश में जो माहौल बना हुआ है, उससे पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश और जाट समाज भी अछूता नहीं है। ऐसे में अजीत सिंह जानते हैं कि इंडिया गठबंधन में जाने से उन्‍हें बहुत बड़ा फायदा होता नहीं दिख रहा है।

वहीं, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और कैराना सीट पर आरएलडी सिंबल पर समाजवादी पार्टी द्वाराअपने उम्‍मीदवार उतारे जाने की शर्त ने और आरएलडी को अधिक असहज कर दिया है। वर्तमान हालातों में जयंत चौधरी के सामने विचारधारा के आधार पर गठबंधन में शामिल होने से अधिक पार्टी का वजूद बचाना है। जयंत चौधरी भली भांति जानते हैं कि भले ही इंडिया गठबंधन में उन्‍हें 7 सीटें मिली हो लेकिन जीत कितनी सीटों पर मिलेगी, इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। यदि इस बार भी चुनाव में परिणाम 2014 और 2019 जैसे रहे तो पार्टी के अस्तित्‍व पर ही संकट पैदा हो जाएगा।

सूत्रों की माने तो एनडीए में जाने पर भाजपा ने आरएलडी को तीन से चार सीटें ऑफर की है। इनमें कैराना, बागपत, कैराना, अमरोहा,और मथुरा शामिल हो सकती हैं। एनडीए में जाने पर भले ही आरएलडी को तीन या चार सीटें मिले, जोकि इंडिया गठबंधन में मिली सात सीटों से कम हो, लेकिन इन सीटों पर पार्टी की जीत की संभावनाएं बेहतर हो जाएंगी। ऐसे में एक दशक से आरएलडी के सामने चला आ रहा जीत का टोटा भी समाप्‍त हो जाएगा। सूत्रों की माने तो उत्‍तर प्रदेश में 10 राज्‍यसभा सीटें भी खाली होने जा रही है। ऐसे में एक सीट आरएलडी को दी जा सकती है। वहीं, केन्‍द्र में भाजपा की सरकार बनने पर आरएलडी को सरकार में शामिल करके मंत्री पद भी दिया जा सकता है।

जयंत चौधरी अखिलेश यादव के दाबव को समाप्‍त करना चाहते हैं ?

कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि जयंत चौधरी पर कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर सीटों पर आरएलडी के सिंबल पर समाजवादी पार्टी  द्वारा अपने उम्‍मीदवार लड़ाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इसमें भी मुजफ्फरनगर सीट को लेकर आरएलडी और समाजवादी पार्टी आने सामने दिख रही है। जयंत भली भांति समझते हैं यदि ऐसा होता है तो उनके पास गठबंधन में केवल चार सीटें अी बचेंगी। ऐसा करके अखिलेश यादव पीछे वाले दरवाजे से आरएलडी को फांसना चाहते हैं। जयंत चौधरी के एनडीए में जाने की खबरों को अखिलेश यादव, समाजवादी पार्टी और इंडिया गठबंधन के लिए एक संकेत माना जा रहा है। इससे जहां जयंत चौधरी पर समाजवादी पार्टी द्वारा बनाया जा रहा दबाव समाप्‍त हो जाएगा, वहीं, जयंत चौधरी इंडिया गठबंधन में प्रेशर पॉलिटिक्‍स के जरिए बेहतर स्थिति में आ जाएंगे।

भाजपा आरएलडी को एनडीए में क्‍यों शामिल करना चाहती है ?

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए ने उत्‍तर में 73 सीटें जीती थी। इनमें से 71 सीटों पर भाजा ने सीधे सीधे जीत दर्ज की थी। वहीं,  दो सीटों पर सहयोगी पार्टी अपना दल के उम्‍मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। वहीं, साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उत्‍तर प्रदेश में एनडीए ने 64 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इनमें से 62 सीटें भाजपा और 2 सीटें अपना दल के खाते में गई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था।

साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व अयोध्‍या में राम मंदिर निर्माण के बाद पूरे देश में, विशेष तौर पर उत्‍तर प्रदेश में जिस प्रकार का माहौल बना हुआ है, भाजपा उसका भरपूर लाभ उठाना चाहती है। ऐसे में भाजपा साल 2014 के अपने प्रदर्शन को ध्‍वस्‍त करना चाहती है। भाजपा आरएलडी को एनडीए में शामिल कर एक तीर से कई शिकार करना चाहती है। आरएलडी को तीन या चार लोकसभा सीट देकर पार्टी उन लोकसभा सीटों को साधना चाहती है जिन्‍हें साल 2019 के लोकसभा चुनाव में गंवा दिया था। इसके अतिरिक्‍त उन सीटों पर भी भाजपा आरएलडी गठबंधन का लाभ लेना चाहती है जहां उन्‍हें साल 2019 के लोकसभा चुनाव में हार मिली था या फिर नजदीकी मुकाबले में जीता था।

इसके अतिरिक्‍त पार्टी दूरगामी परिणामों पर भी गौर कर रही है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी कई बार इस बात के संकेत दे चुके हैं कि 2024 लोकसभा चुनाव के बाद वह तीसरी बार सरकार बनाएंगे और कुछ कड़े फैसले लेंगे। ऐसे सरकार के विरोध में आन्‍दोलनों का दौर चलना लाजमी है। पिछले कुछ अनुभवनों से पता चलता है कि देश में किसान आन्‍दोलन मजबूती से चलाए जा सकते हैं। इनमें न केवल किसानों के साथ भारी भीड़ एकत्रित होती है। इसका सरकार पर दबाव भी बनता है। इन आन्‍दोलनों को पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के किसानों से बड़ा समर्थन मिलना है। इनमें अधिकांश किसान जाट बिरादरी से ताल्‍लुक रखते हैं। यदि आरएलडी सरकार के साथ होगी तो पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के किसानों को साधा जा सकता है। भले ही भाजपा आरएलडी और मुजफ्फरनगर जैसी सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयबा रही थी, लेकिन हमने देखा कि भाजपा का कोई भी जाट नेता तीन कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुए किसान आन्‍दोलन में जाट बिरादरी को साधने में कामयाब नहीं हो सका था। अंत में गृहमंत्री अमितशाह को मैदान में उतरना पड़ा था। उन्‍होंने दिल्‍ली के सांसद प्रवेश वर्मा के घर पर जाट नेताओं के साथ बैठक की थी।

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