नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण जैसे सपनों के शहर के सपने भी हो गए महंगे
Dreams of dream cities like Noida, Greater Noida and Yamuna Authority have also become expensive.

नोएडा ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण : श्रमिकों, कामगारों के लिए आवास कहां हैं ?
लेखक : राजेश बैरागी, वरिष्ठ पत्रकार
मैं नोएडा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरणों के अधिकारियों से अक्सर यह सवाल पूछता हूं कि इन अत्याधुनिक और अत्यधिक महंगे हो चले शहरों को किसने बसाया है ? आमतौर पर अधिकारी इस सवाल से कन्नी काट लेते हैं, क्योंकि शायद उनके लिए यह सवाल गैरजरूरी है। सुधी पाठकगण इस प्रश्न पर विचार करते हुए इस पोस्ट को पढ़ना जारी रखें। क्या इन शहरों को नवाबों, रईसजादों, उद्यमियों, धनपतियों या सेठ साहूकारों ने बसाया है ? इन सभी का इन शहरों की बसावट और बुनावट में अहम् योगदान है, परंतु जिन श्रमिकों, कामगारों ने इन शहरों का निर्माण अपनी मेहनत से किया है, उनके योगदान पर कहीं कोई चर्चा क्यों नहीं होती। कुशल, अकुशल, मिस्त्री, बेलदार, लुहार, बढ़ई, टायर पंचर लगाने वाले से लेकर घरों में झाड़ू पोंछा लगाने से लेकर अमीरों के कुत्ते घुमाने वालों तक के भरोसे चल रहे इन शहरों में उनके रहने की क्या व्यवस्था है ?
दरअसल यह प्रश्न नोएडा प्राधिकरण द्वारा लिए गए उस निर्णय से निकला है जिसके तहत नौकरी पेशा वाले लोगों के लिए एक हजार फ्लैट बनाए जाने हैं। नोएडा प्राधिकरण का यह निर्णय बेहद स्वागत योग्य है। 1976 के उत्तर प्रदेश सरकार के औद्योगिक विकास अधिनियम के तहत गठित नोएडा ग्रेटर नोएडा आदि प्राधिकरणों को एकीकृत औद्योगिक शहर बसाने का जिम्मा दिया गया था। शुरुआत में नोएडा प्राधिकरण ने ऐसा किया भी। यहां लगने वाली औद्योगिक इकाइयों के श्रमिकों से लेकर मालिक तक को आवासीय सुविधा दी गई। समय के साथ नोएडा की विकास यात्रा कुलांचे भरने लगी और प्राधिकरण अपने गठन के मूल उद्देश्य को भूल गए।
एक अनुमान के अनुसार नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में औद्योगिक इकाइयों, अन्य नागरिक सुविधाओं और भवन निर्माण में लगे श्रमिकों तथा घरेलू कार्यों में लगे लोगों की संख्या भूखंड और भवन स्वामियों की संख्या के मुकाबले चार गुना है। उनके रहने की क्या व्यवस्था है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है ? रिक्शा, रेहड़ी पटरी वालों को निशुल्क पेयजल की व्यवस्था किसे करनी चाहिए ?
नगर पालिकाओं और औद्योगिक विकास प्राधिकरणों का अंतर यहां साफ नजर आता है। नगर पालिकाएं नागरिकों की सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं। औद्योगिक विकास प्राधिकरणों का नजरिया विकास के लिए भूमि की खरीद फरोख्त पर रहता है। मेरा मानना है कि नोएडा प्राधिकरण की नौकरीपेशा लोगों के लिए एक हजार फ्लैट बनाने की योजना एक शुरुआत है जिसकी नकल ग्रेटर नोएडा, यमुना प्राधिकरण और अन्य दूसरे औद्योगिक प्राधिकरण भी करेंगे।