स्पेशल स्टोरी

नजरिया : गाली वाली संस्‍कृति में फंसता हुआ ‘नोएडा’

Viewpoint: 'Noida' stuck in abusive culture

Panchayat 24 : बात साल 2015 के आसपास की है। एक पत्रकार होने के नाते खबरों के लिए अधिकारियों से मिलना जुलना होता रहता था। एक दिन मैं जिले के एक अधिकारी के पास खबरों के सिललिसले में पहुंचा। अधिकारी महोदय अपने कार्यालय में बैठे हुए थे। शायद उस दिन कुछ काम का दबाव कम था। उनके व्‍यवहार से लगा कि आज वह फुर्सत में हैं। बातचीत के दौरान तत्‍कालीन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा शुरू हो गई।

बातों का सिलसिला चल ही रहा था कि अचानक मेरे मन में पता नहीं क्‍या आया कि मैंने उनसे कहा- गौतम बुद्ध नगर में अपना एक मकान ले ही लीजिए। परिवार को भी यहीं पर बुला लीजिए। परिवार साथ रहेगा तो परिजनों की चिंता नहीं होगी। मेरा अनुभव था कि कोई भी अधिकारी यदि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में नौकरी करता है तो उसका यहां पर अपना एक घर बनाने का सपना होता है। लेकिन इन अधिकारी महोदय ने जो जवाब दिया, सुनकर मैं हतप्रभव रह गया।

उन्‍होंने कहा, आप नोएडा में घर खरीदने और यहां पर परिवार को लाने की बात कह रहे हैं। यदि कोई मुझसे कहे की आपको मुफ्त में नोएडा या ग्रेटर नोएडा में एक मकान देते हैं,आप परिवार सहित शिफ्ट हो जाईए। मैं उससे भी साफ इंकार कर दूंगा। मैं प्रयास कर रहा हूं कि मेरा ट्रांसफर किसी दूसरे जिले में हो जाए। इन अधिकारी मोहदय के जवाब से मेरी एक गलतफहमी दूर हो गई कि नोएडा ग्रेटर नोएडा की चमकधमक के सभी लोग दीवाने हैं। वहीं, एक जिज्ञासा ने भी मेरे दिमाग में जन्‍म ले लिया।

जिज्ञासा को शांत करने के लिए मैंने अधिकारी महोदय से कहा- आप क्‍या कह रहे हैं ? नोएडा और ग्रेटर नोएडा तो आधुनिकता में दिल्‍ली और मुम्‍बई को भी पीछे छोड़ने को तैयार हैं। आधुनिक शहरों की सभी सुविधाएं यहां पर मौजूद हैं। यहां के शिक्षण संस्‍थान देश के बेहतर शिक्षण संस्‍थानों में शुमार होते हैं। मेरी बात सुनकर वह चुप हो गए। हाव भाव देखकर प्रतीत हो रहा था कि वह मेरी बात से बिल्‍कुल सहमत नहीं थे।

तभी उनका कार्यालय सहायक चाय लेकर आ गया। हम दोनों ने चाय पीना शुरू कर दिया। मुझे लगा कि अधिकारी महोदय के पास मेरे सवाल का जवाब नहीं है और वह ऐसे ही गौतम बुद्ध नगर के साफ सुथरे और आधुनिक शहरों की आलोचना कर रहे हैं। लेकिन अधिकारी महोदय के मन में कुछ और ही चल रहा था। कुछ देर बाद उन्‍होंने कहा, अपनी सामाजिक परंपराओं और परिवारिक संस्‍कारों का उपहास उड़ाना ही आधुनिकता है ? क्‍या अपनी सदियों पुरानी सांस्‍कृतिक विरासत पर शर्म महसूस करना आधुनिकता का पर्यायवाची समझ लिया जाए ?

लोग आधुनिकता को किस रूप में परिभाषित करते हैं, यह महत्‍वपूर्ण हैं। उन्‍होंने कहा आधुनिकता के नाम पर हर सामाजिक बदलाव का हम अंधाधुंध अनुसरण करके उस पतंग की तरह होते जा रहे हैं जो डोर कटने के बाद आसमान की ऊंचाईयों को तो छूती है, लेकिन जमीन से उसका कोई सम्‍पर्क नहीं होता। अन्‍त में पतंग का अंजाम क्‍या होता है ? कुल मिलाकर उन अधिकारी महोदय ने काफी कुछ कहा।  मुझे उनकी बातें में सत्‍यता नजर आई, लेकिन यह भी लगा कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में यह कल्‍चर नहीं आएगा। यहां पर एक विकसित नागरिक समाज का निर्माण हो रहा है। लेकिन हाल ही में नोएडा में घटी घटनाओं के बाद  लगभग सात साल पूर्व उन अधिकारी महोदय द्वारा कही गई बातें सत्‍य साबित होती नजर हा आ रही हैं।

पहली घटना, नोएडा के सेक्‍टर-93बी की चर्चित घटना हैं जिसमें श्रीकांत त्‍यागी एक व्‍यक्ति द्वारा महिला से अभद्रता की, गाली गलौंच की और अमर्यादित आचरण किया। इस प्रकरण के कारण बवाल मचा हुआ है। मामूली सा दिखने वाला यह मुद्दा देश भर में सामाजिक और राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है। दूसरी घटना,  सेक्‍टर-110 की है जहां एक महिला कार से ई-रिक्‍शा छूने जाने पर सरेआम ई-रिक्‍शा चालक की पिटाई करती है। अभद्र व्‍यवहार करती है। गाली गलौंंच करती है। तीसरी घटना, नोएडा के सेक्‍टर-128 स्थित हाई प्रोफाइल विशटाऊन हाऊसिंग सोसायटी की है। यहां पर महिला ने गेट खोलने पर देरी होने पर सिक्‍टयोरिटी गार्ड को जमकर गालियां दी। नशे में धुत हालत में अभद्रता की। असभ्‍य आचरण किया। यह महिला पेशे से एक वकील हैं।

इन तीनों ही घटनाओं के वीडियों सोशल मीडिया पर वायरल हुए। इन घटनाओं की वीडियो देखकर लोगों की आंखे शर्म से झूक जाती हैं। कोई भी सभ्‍य व्‍यक्ति इन वीडियो को परिवार में देखना अथवा सुनना पसंद नहीं करेगा। यह तीन घटनाएं तो महज उदाहरण भर हैं। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में ऐसी घटनाएं आम बात हो चुकी हैं।

आज इन घटनाओं को देखकर मुझे उन अधिकारी महोदय द्वारा नोएडा और ग्रेटर नोएडा में अपना घर बनाने से इंकार करने के कारण का पता चल गया है। भारतीय मूल्‍यों से इस कदर चिड़ हो चुकी है कि आधुनिकता के नाम पर समाज ने उन बदलाव तक को स्‍वीकार कर लिया है जो सभ्‍यता के विकास क्रम की प्रथमिक संस्‍था परिवार और समाज की जड़ों को खोखला कर रहे हैं। संस्‍कार ईंट पत्‍थरों की चारदीवारी में कैद होकर रह गए हैं। भारतीय समाज के आधार नम्रता, करूणा, क्षमा, दया, प्रेम, धैर्य, शीलता, सहयोग, परोपकार और मानवता जैसे मानव मूल्‍य कहीं खो गए हैं। सवाल उठता है क्‍या नोएडा का समाज आधुनिकता की कीमत अपने संस्‍कारों के रूप में चुका रहा है ? यदि उत्‍तर हां में है, तो एक पिता के रूप में, एक पति के रूप में, एक समाज के नागरिक के रूप में और एक परिवार का मुखिया होने के नाते उन अधिकारी महोदय की तरह हर व्‍यक्ति के लिए यह एक चिंता की बात है।

 

 

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