दादरी विधानसभास्पेशल स्टोरी

महापुरूषों की जातियों के फेर में उलझकर रह गया नगरपालिका के मार्गों का नामकरण, नहीं बन सकी आमसहमति

The naming of the municipal routes remained entangled in the turn of the castes of the legends, consensus could not be reached

Panchayat24 (डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा) : कहते है कि देश और समाज पर अपना सबकुछ बलिदान करने वाले महापुरूषों की कोई जाति नहीं होती। वह सर्वसमाज के लिए आदरणीय और अनुकरणीय होते हैं। दादरी नगरपालिका कुछ ऐसे ही महापुरूषों के नाम पर प्रमुख मार्गों के नामकरण की योजना लंबित है। लेकिन कुछ लोग इस योजना का विरोध केवल इन महापुरूषों के नाम पर कर रहे हैं। कई बार इस मामले पर आमसहमति बनाने की कोशिश की गई लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी हैं। महापुषरूषों के नामों पर सहमति के लिए आठ से दस सदस्‍यों की एक समिति का गठन किया गया था, लेकिन अभी तक इस समिति की बैठक नहीं हो सकी है। इस संबध में नगरपालिका अध्‍यक्ष गीता पंडित का कहना है कि इस बात पर लगभग सभी लोगों की सहमति हो चुकी है कि नगर के मार्गों के नामों का नामकरण महापुरूषों के नाम पर रखा जाना चाहिए। जल्‍द ही एक इस संबंध में बनाई गई समिति की एक बैठक बुलाकर यह भी तक कर लिया जा एगा कि किस मार्ग का नाम किस महापुरूष के नाम पर रखा जाए।

क्‍या है पूरा मामला ?

दरअसल,  मामला तीन साल पूर्व मार्गों के नए सिरे से नामकरण का विचार नगरपालिका को उस समय आया जब नगरपालिका के वार्ड संख्‍या-2 स्थित गौतमपुरी में पाकिस्‍तानी गली नाम से मार्ग का नाम सामने आया। दरअसल, इस मार्ग पर अधिकांश उन लोगों के मकान स्थित हैं, जो देश के बंटवारे के समय पाकिस्‍तान छोड़कर भारत आ गए थे। यहां पर लगभग 70 परिवार रहते हैं। कोई निर्धा्ररित पहचान नहीं होने के कारण इस मार्ग को पाकिस्‍तानी गली के नाम से जाना जाने लगा। इतना ही नहीं इसी पते पर यहां रहने वाले लोगों के राशन कार्ड, वोटर कार्ड और आधार कार्ड जैसे दस्‍तावेज भी बन गए थे। मामला मीडिया में आने पर तूल पकड़ गया। नगरपालिका ने नगरपालिका के सभी मार्गों के नामों की समीक्षा की तो पता चला कि सभी मार्गों के नाम परम्‍परागत तरीके से चले आ रहे हैं। किसी भी मार्ग का नामकरण वैध तरीके से नहीं किया गया है।

क्‍या है मार्गों के नामकरण का वैध तरीका ?

नगरपालिका के कार्यकारी अधिकारी समीर कश्‍यप का कहना है कि किसी भी स्‍थान पर मार्गों के नामकरण की एक वैध प्रक्रिया होती है जिसके बाद ही शासन ने उस स्‍थान अथवा मार्ग के नाम को मान्‍यता प्रदान की जाती है।

क्‍या है नगरपालिका में मार्गों के नामकरण की योजना ?

नगरपालिका के कार्यकारी अधिकारी समीर कश्‍यप ने बताया कि लगभग तीन साल पूर्व शुरू हुए विवाद के बाद नगरपालिका ने दादरी शहर के सभी प्रमुख मार्गों का नामकरण महापुरूषों के नाम पर रखें जाएं। उन्‍होंने बताया कि शासनादेश में भी यहीं कहा गया है कि मार्गों एवं स्‍थानों का नामकरण महापुरूषों और बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों के नाम पर किया जाए। ऐसे में नगरपालिका के प्रमुख मार्गों का नाम देश एवं समाज के ऐसे महापुरूषों और प्रमुख हस्तियों के नाम पर रखा जाए जिनका देश और समाज के लिए योगदान रहा है। इनमें भी देश के साथ साथ गौतम बुद्ध नगर तथा आसपास के क्षेत्रों में जन्‍में महापुरूषों के नाम पर मार्गों का नामकरण किया जाए जिन्‍हें इतिहास में उतनी तवज्‍जों नहीं मिली जितना बड़ा उनका देश और समाज के लिए योगदान था।

किन महापुरूषों के नाम पर रखे जाने थे नगरपालिका के मार्गों के नाम?

नगरपालिका की ओर से बोर्ड बैठक में एक प्रस्‍ताव रखा गया। प्रस्‍ताव के अनुसार शहर के मार्गों का नामकरण विजय सिंह पथिक, छंगु बाल्मिककी, ब्रिगेडियर उस्‍मान, चतुरसेन शास्‍त्री, महेन्‍द्र प्रताप सिंह, मंगल पांड़े, हर्षवर्धन और हसनखान मैवाती, जैसे लोगों के नाम पर करने का प्रस्‍ताव किया गया था। जानकारों की माने तो कुछ लोगों ने इस योजना का केवल इस लिए विरोध किया कि उन्‍हें कुछ महापुरूषों के नामों पर आपत्तियां थी।

सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर भी दादरी में मच चुका है राजनीतिक बवाल

दादरी नगरपालिका में महापुरूषों के नाम पर मार्गों के नामकरण योजना का ही लोगों द्वारा जाति के आधार पर विरोध नहीं किया जा रहा है। यहां दिसम्‍बर 2021 में भी सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर राजनीतिक बवाल मच चुका है। इसके बाद गुर्जर और ठाकुर समुदाय आमने सामने आ गए थे। दरअसल,दादरी स्थित मिहिर भोज डिग्री कॉलेज में मुख्‍यमंत्री योगीआदित्‍यनाथ द्वारा सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण करना था। ठीक उनके दादरी पहुंचने से दो दिन पूर्व गुर्जर और ठाकुर समाज के बीच सम्राट मिहिर भोज पर अपनी अपनी जाति का होने का दावा किया जाने लगा। विवाद उस समय और गहरा गया जब जिस प्रतिमा का मुख्‍यमंत्री को अनावरण करना था उस पर लगे पत्‍थर पर गुर्जर शब्‍द को छिपाने का प्रयास किया गया। गुर्जर समाज ने इसका भारी विरोध किया। विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा इतना तूल पकड़ गया था कि इसके आगे सभी मुद्दे गोण हो गए थे।

 

 

 

 

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