स्पेशल स्टोरी

कुंदरकी चुनाव परिणाम : उत्‍तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में सपा के पीडीए का भ्रम टूट गया है

Kundarki election result: The illusion of SP's PDA has been broken in Uttar Pradesh assembly by-election

राजेश बैरागी

Panchayat 24 : कुंदरकी विधानसभा सीट पर उपचुनाव के नतीजे में अभूतपूर्व क्या है? क्या वहां भाजपा की जीत अभूतपूर्व है या समाजवादी पार्टी की हार? आजकल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव लोहिया के स्थान पर अंबेडकर का नाम जपते हुए दिखाई पड़ते हैं। क्या समाजवादी पार्टी ने अपने प्रणेता को अंबेडकर से बदल लिया है। दरअसल बीते लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी अपने इतिहास की सबसे बड़ी जीत हासिल करने के बाद अंबेडकर की अनुयाई होने का ढोंग कर रही है। उसने अपने सभी कार्यालयों में अंबेडकर की तस्वीरें सजा ली हैं। कभी अंबेडकर गांवों के स्थान पर लोहिया गांव बनाने वाली समाजवादी पार्टी पिछड़े दलित और अल्पसंख्यकों की जुगलबंदी से लोकसभा चुनाव में सफलता हासिल करने के बाद पीडीए के लाभकारी फॉर्मूले को बरकरार रखना चाहती है।

हालांकि उपचुनावों में यह फॉर्मूला कामयाब नहीं रहा और प्रतिष्ठित सीट कुंदरकी पर बड़े अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा। कुंदरकी सीट पर 65 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। वहां से सपा का प्रत्याशी भी मुस्लिम ही था। उसने एक स्थान पर कहा था कि यहां सपा का कुत्ता भी जीत जाएगा। बताया जा रहा है कि सपा प्रत्याशी को स्वयं मुस्लिम मतदाताओं ने हराया है। किसी एक सीट के उपचुनाव नतीजे उत्तर प्रदेश विधानसभा या लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श नहीं हो सकते हैं। परंतु इन उपचुनावों ने सपा के नेताओं द्वारा पीडीए के अलापे जा रहे राग की पोल खोल दी है।

क्या भविष्य में पिछड़े दलित अल्पसंख्यक की एकता का फॉर्मूला कामयाब हो पाएगा? दरअसल समाजवादी पार्टी के शीर्ष पर एक ही परिवार के लोग काबिज हैं। क्या सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर कभी कोई दलित या अल्पसंख्यक की ताजपोशी हो सकती है। यह प्रश्न अखिलेश यादव को उकसा कर उनकी गद्दी छीनने के उद्देश्य से नहीं है। सभी क्षेत्रीय राजनीतिक दलों पर आमतौर पर किसी व्यक्ति विशेष अथवा परिवार का कब्जा है। पार्टी लोहिया की अनुयाई हो अथवा अंबेडकर की ,उसका उद्देश्य तथाकथित सोशल इंजीनियरिंग के बहाने से दो तीन जाति बिरादरी के गठजोड़ से सत्ता हासिल करने का ही रहता है।

उनके द्वारा किसी अन्य को शीर्ष पद सौंपने की कल्पना भी व्यर्थ है जब तक कि उनका खुद पूरी तरह पतन न हो जाए। उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव 2027 में प्रस्तावित है बशर्ते कि लोकसभा विधानसभा क्षेत्रों के नये सीमांकन और एक देश एक चुनाव जैसी नयी व्यवस्था लागू न हो जाए। अखिलेश यादव तब तक पीडीए को लेकर और गंभीर हो सकते हैं। हालांकि उनके लिए पिछड़े और अल्पसंख्यकों को एकजुट रखना ही मुश्किल होगा। भाजपा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तब तक हिंदुओं के ध्रुवीकरण के लिए कोई कसर बाकी रखेंगे,ऐसी कोई संभावना नहीं है।

Related Articles

Back to top button