नोएडा प्राधिकरण के आवासीय भूखण्ड विभाग के कर्मचारियों को 20 मिनट खड़े रहने की सजा से कोई बदलाव दिखेगा ?
Will the punishment of making the employees of the residential plot department of Noida Authority stand for 20 minutes bring any change?

Panchayat 24 : नैतिक बल के आधार पर हृदय परिवर्तन के लिए दी जाने वाली सजा कोई तात्कालिक परिणाम देती है ? बचपन में स्कूल में गलतियां करने पर अध्यापकों द्वारा सापेक्ष दण्ड दिया जाता था। इस दण्ड का उद्देश्य छात्रों को किसी तरह से शारारिक अथवा मानसिक रूप से प्रताडित करना नहीं होता था। केवल छात्र को गलती का अहसास कराना होता था। बचपन की स्मृतियां एकाएक उस समय ताजा हो गई जब नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ लोकेश एम द्वारा आवासीय भूखंड विभाग के कर्मचारियों को कर्तव्य पालन में उदासीनता बरतने पर 20 मिनट तक उनकी सीट पर खड़े रहने के निर्देश दिए।
दरअसल, बीते सोमवार को नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण में एक अजब घटनाक्रम घटा। प्राधिकरण के सीईओ लोकेश एम लगभग 11 बजे अपने कार्यालय में आवश्यक कार्य कर रहे थे। इस दौरान उनकी नजर कक्ष में लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी। उन्होंने देखा कि एक बुजुर्ग पिछले काफी देर से खड़े हुए हैं। विभाग में उपस्थित कर्मचारियों अमानवीय आचरण करते हुए उनसे बैठने तक के लिए नहीं कहा गया है। सीईओ ने अपने कार्यालय से आवासीय भूखंड आवंटन विभाग को बुजुर्ग दम्पत्ति से मानीय आचरण करते हुए बैठने के लिए कहने और तुरन्त उनका काम करने का संदेश भिजवाया। आवासीय भूखंड विभाग के कर्मचारियों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। लगभग आधा घंटा बाद सीईओ की नजर एक बार फिर सीसीटीवी कैमरे पर गई। सीसीटीवी कैमरे पर चल रहे दृश्य को देखकर उन्हें बहुत बुरा लगा। वह तुरन्त आवासीय भूखंड विभाग में पहुंच गए और कर्मचारियों से बुजुर्ग का कार्य नहीं करने पर सवाल पूछे। कोई भी कर्मचारी संतोषजनक जवाब नहीं दे सका।
सीईओ लोकेश एम ने स्कूली बच्चों की तर्ज पर सभी कर्मचारियों को 20 मिनट तक अपने स्थान पर खड़े रहने का निर्देश दिया। शायद 20 मिनट तक खड़े रहकर सभी कर्मचारी अपनी गलती का एहसास करें। कर्मचारी उस दर्द का अनुभव करे जो दर्द बुजुर्ग ने उनके मिले कष्ट के कारण झेला। सीईओ द्वारा ऐसा निर्देश देने के पीछे “जाके पांव न पड़े बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई” वाली सोच रही होगी। इस पूरे घटनाक्रम ने आम जनमानस के बीच प्राधिकरणों के बारे में बन चुकी धारणा को पुष्ट कर दिया है। एक बार फिर प्राधिकरणों की व्यवस्था और व्यवस्था की जटिल प्रक्रिया पर सवाल खड़े होते हैं। क्या 20 मिनट अपनी सीट पर लगातार खड़े रहने के बाद इन कर्मचारियों तथा प्राधिकरण के दूसरे कर्मचारियों की नैतिकता और मानवता अचानक जाग जाएगी ? क्या भविष्य में किसी भी फरियादी को अपने काम के लिए प्राधिकरण के कर्मचारियों और अधिकारियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे ? या फिर कर्मचारी स्कूल के शैतान बच्चे की तरह अध्यापक द्वारा दण्डि़त किए जाने के बाद पीछे अध्यापक को ही मुंह चिढ़ाएंगे ? क्या यह सीईओ साहब का प्रबंधन स्तर पर कोई नया प्रयोग है ? खैर, इन सभी प्रश्नों के उत्तर भविष्य के गर्भ में ही छिपे हुए हैं।
इस बार आवासीय भूखंड विभाग अपनी समस्या लेकर पहुंचे बुजुर्ग का भाग्य अच्छा था कि सीईओ लोकेश एम को वह सीसीटीवी कैमरे में नजर आ गए। वरना कितने दशकों से लोग प्राधिकरण में अपने काम के लिए इधर से उधर ठोकर खाकर भटकते रहते हैं। लोग घंटों अधिकारियों और कर्मचारियों के इंतजार में खड़े रहते रहे हैं। कुछ तो ऐसे परिवार भी है जिनकी दूसरी या तीसरी पीढ़ी प्राधिकरण में अपने काम के लिए धक्के खा रही हैं। शायद यह लोग किसी सीसीटीवी कैमरों में आज तक नहीं आ सके हैं। यदि सीसीटीवी कैमरों में आए तो होंगे लेकिन किसी सीईओ की नजर उनके ऊपर नहीं पड़ी होगी। यदि नजर इनके ऊपर पड़ी होगी तो उनकी आत्मा ने ऐसे लोगों के दर्द को महसूस नहीं किया होगा। यदि दर्द को महसूस किया भी होगा तो प्राधिकरण की व्यवस्था और प्रक्रिया के आगे आत्मा की आवाज जरूर कहीं दब गई होगी। इस प्रकरण में सीईओ लोकेश एम की कर्तव्य निष्ठा और जनसमस्याओं के निस्तारण के प्रति उनके संकल्प के दर्शन जरूर होते है। साथ ही प्राधिकरण के कर्मचारियों की उदासीनता के आगे उनकी लाचारी भी उजागर होती है।