किसान आन्दोलनों के सहारे गौतम बुद्ध नगर में जमीन तलाशता 'वामपंथ'
'Left' searching for land in Gautam Buddha Nagar with the help of farmer movements

Panchayat 24 : गौतम बुद्ध नगर में किसान आन्दोलनों का इतिहाया लगभग 30 साल पुराना है। पिछले दो दशकों से किसान आन्दोलनों में तेजी आई है। इन किसान आन्दोलनों की मुख्य विशेषता यह रही है कि इनका अधिकांश नेतृत्व राजनीतिक दलों अथवा व्यक्ति विशेष के इर्दगिर्द रहा है। हाल ही में किसानों की मांगों को लेकर ग्रेटर नोएडा में हुए किसान आन्दोलन में कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इन किसान आन्दोलनों में राजनीतिक दल सहयोगी और समर्थक बनकर रह गए हैं। जबकि किसान आन्दोलनों की बागड़ोर वामपंथी विचारधारा वाले संगठनों और लोगों के हाथों मे आ गई है। जिले में चल रहे किसान आन्दोलनों में ऐसा पहली बार देखने में आ रहा है कि धरना प्रदर्शन में शामिल होगों के सिरों पर हशिया और हथौड़ी वाली टोपियां सज रही है। इतना ही नहीं देश में वामपंथ का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्रीय नेताओं का भी गौतम बुद्ध नगर के किसान आन्दोलनों में आना जाना लगा रहता है। गौतम बुद्ध नगर में किसान आन्दोलनों की इस बदलती प्रकृति के कारण जानकारों का मानना है कि किसान आन्दोलनों की आड़ में दिल्ली एनसीआर के अहम हिस्से में वामपंथ खुद को खड़ा करना चाहता है।
गौतम बुद्ध नगर में वामपंथ को मिलने लगा है खाद्य पानी
दरअसल, गौतम बुद्ध नगर एक औद्योगिक जिला है। यहां नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण सहित यूपीसीडा ने बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास के लिए किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया किया गया है। किसानों को सपने दिखाए गए थे कि इस क्षेत्र का औद्योगिक विकास होगा। उनकी जमीन की बेहतर कीमत मिलेगी। विकास में स्थानीय एवं किसान परिवारों की भागीदारी होगी। औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों को दिखाए गए स्वर्णिम सपनों की सच्चाई जल्द ही सामने आ गई। बहुत कम कीमत पर किसानों की जमीनों का अधिग्रहण कर लिया गया। प्राधिकरण लूट का अड्डा बन गए। किसानों से किए गए वायदों पर तुषारापात हो गया। प्राधिकरण के चपरासी से लेकर आला अधिकारियों ने किसानों को दुधारू गाय समझका मनमाने तरीक से भ्रष्टाचार किया। इसकी कीमत किसान परिवारों को चुकानी पड़ी। जल्द ही जिले में ऐसे परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ी जिनकी जमीन भी चली गई और जमीन अधिग्रहण के बाद मिली मुआवजा राशि भी हाथों से निकल गई। विकास में भागीदारी के नाम पर चंद लोगों को मौका मिल सका। रही सही कसर अज्ञानता के कारण जमीन के बदले मिली रकम के सही उपयोग नहीं करने के कारण निकल गई। यहां लगने वाले उद्योगों में स्थानीय और किसान परिवारों के बच्चों के लिए रोजगार द्वारों पर पहरा लगा दिया गया। यहां बनने वाले स्कूलों में प्रवेश पाना किसान और स्थानीय परिवारों के बच्चों के लिए सपना बनकर रह गई। शिक्षा ऊंची कीमतों पर बेची जाने लगी।
दिल्ली के करीब होने के कारण सरकारों ने इस जिले को नए सिरे से बेचने की योजना बनाई। इस योजना पर सभी दलोंं की सरकारों ने अमल किया। जल्द ही प्राधिकरणों ने अपनी भूमिका बदल ली। औद्योगिक विकास प्राधिकरण प्रॉपार्टी डीलर बनकर रह गए। उनका पूरा ध्यान हाऊसिंग सोसायटी, बिल्डर सोसायटी और आवासीय योजनाओं पर चला गया। किसानों से कम कीमत पर खरीदी गई जमीन ऊंची कीमतों पर बेची जाने लगी। सरकारों के भ्रष्टाचार का बिल्डरों ने जमकर लाभ उठाया। औद्योगिक इकाइयां लगाने के लिए चिन्हित जमीनों को बिल्डर सोसायटियों के लिए दिया जाने लगा। किसानों को कानून का डर दिखाकर बिल्डरों की स्वार्थ सिद्धि के लिए जमीनों का जबरन अधिग्रहण किया जाने लगा। भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों ने कानून की कमजोरियों का लाभ उठाकर जमकर किसानों का शोषण किया।
दूसरी ओर जिले में हो रहे ढांचगत और औद्योगिक विकास के कारण प्रदेश और देश के अलग अलग हिस्सों से लोग यहां रोजगार की तलाश में आने लगे। कुछ ही सालों में यहां कामगारों की संख्या लाखों में हो गई। उद्योगों में भी कामगारों के शोषण की खबरें सुनना आम हो गया। अपनी मांगों को लेकर कामगार वर्ग ने आवज उठाई। हालांकि स्थानीय संगठनों और राजनीतिक दलों ने अपनी सुविधानुसार मजदूरों की मांगों का समर्थन किया। लेकिन वामपंथी विचारधारा वाले लोगों और संगठनों ने इन आन्दोलनों में भूमिका निभानी शुरू कर दी। फिर वामपंथी दलों का इन्हें साथ मिलने लगा। इस प्रकार शहरी उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों तक वामपंथियों ने पहुंच बनाई लेकिन वामपंथ का सबसे बड़ा समर्थक वर्ग कहा जाने वाला किसान अभी तक गौतम बुद्ध नगर में वामपंथी विचारधारा से अपरिचित था। इसका पता इस बात से भी चलता है कि गौतम बुद्ध नगर में वामपंथ के फलने और फूलने वाली सभी आवश्यक परिस्थितियां होने के बावजूद वामपंथी दलों का यहां कोई वजूद नहीं है।
आन्दोलनों का किसानों को नहीं हुआ पर्याप्त लाभ, चमक गए आन्दोलन का नेतृत्व करने वालों के भाग्य
शासन, प्रशासन और प्राधिकरणों में किसानों के प्रति हो रहे अन्याय और भ्रष्टाचार के प्रति सरकारों का रवैया भी उदासीन रहा। कई बार ऐसा लगा कि किसानों से हो रही लूट खसौट को सरकारों का समर्थन प्राप्त है। यह वहीं मौका था जब किसानों की लाचारी का राजनीतिक दलों और नेताओं ने अपने निजी हितों के लिए लाभ उठाया। किसानों को न्याय दिलाने के नाम पर बड़े बड़े आन्दोलन भी हुए। इन आन्दोलनों का फोरी तौर पर कुछ लाभ किसानों को जरूर हुआ लेकिन किसान आन्दोलनों का नेतृत्वकर्ताओं को नई पहचान मिली। उनकी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में तेजी से बदलाव हुए। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि किसान आन्दोलनों को राजनीतिक दलों ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया। कई बार ऐसा लगा कि विरोधी दलों ने किसानों को आगे कर सत्ता पक्ष पर दबाव बनाने का भी प्रयास किया। हर बार किसान ठगे गए। हालांकि कई बार किसान आन्दोलन हिंसक भी हुए। लोगों की जानें भी गई। लेकिन आज तक किसानों की समस्याओं को लेकर व्यापक स्तर पर प्रयास नहीं हो सके हैं। हर बार किसानों को लगता है कि आन्दोलन के रास्ते ही उन्हें न्याय मिल सकता है। यहीं कारण है कि हर बार किसान राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखने वाले लोगों और राजनीतिक दलों की चालों का शिकार हो जाते हैं। वर्तमान में राजनीतिक दलों द्वारा अगुवाई वाले किसान आन्दोलनों से किसानों और स्थानीय लोगों का मोहभंग हो चुका है। जिले में अधिकांश किसान आन्दोलन भारतीय किसान यूनियन, अखिल भारतीय किसान सभा और व्यक्ति विशेष के नेतृत्व में चल रहे हैं।
ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण पर चल रहा किसान आन्दोलन पूरी तरह वामपंथ केन्द्रित
वर्तमान में जिले में मुख्यत: नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना और एनटीपीसी द्वारा जमीन अधिग्रहण से प्रभावित किसानोंं द्वारा अपनी मांगों को लेकर आन्दोलन चलाए जा रहे हैं। इनमें से ग्रेटर नोएडा पर संचालित किसान आन्दोलन का नेतृत्व पूरी तरह से वामपंथी विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों के हाथों में है। बीते दिनों ग्रेटर नोएडा में किसान आन्दोलन काफी लंबा चला था। इस आन्दोलन की भी अगुवानी किसान सभा ने की थी। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल, भारतीय किसान यूनियन ने इस आन्दोलन को अपना समर्थन दिया था। आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख लोगों के जेल जाने के बाद आन्दोलन ने तेजी पकड़ी। जानकारों की माने तो इस दौरान किसान आन्दोलन में वामपंथी दलों को श्रमिक संगठन सीटू (सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन) की सक्रियता बढ़ गई थी। धरनास्थल पर सीटू कार्यकर्ता और वामपंथी विचारधारा वाले लोग सक्रिय हो गए थे। वामपंथी दल की बड़ी नेता वृंदा कारत भी धरना स्थल पर पहुंची। सूत्रों की माने तो इस दौरान किसान आन्दोलन की रूपरेखा भी वामपंथी विचारधारा के एक धड़े के द्वारा ही तय होती थी। किसान सभा की बैठकों में वामपंथी विचारधारा वाले संस्थानों से जुड़े कुछ बड़े चेहरे भी उपस्थित रहते थे।
किसानों के मन में राजनीतिक दलों के प्रति उपजे अविश्वास का परिणाम है वामपंथ की सक्रियता
दरअसल, किसान आन्दोलनों के शुरूआती दौर में राजनीतिक दलों के द्वारा ही इन आन्दोलनों का नेतृत्व किया जाता था। धीरे-धीरे राजनीतिक दलों के आहवान पर शुरू किए गए किसान आन्दोलनों के प्रति किसानों के मन में असंतोष और अविश्वास पैदा हो गया। एक दौर ऐसा भी आया कि जिले में किसान आन्दोलनों का दौर थम गया। किसान आन्दोलनों को लेकर पैदा हुए शुन्य को वामपंथियों ने भरने का प्रयास किया है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर महीनों तक चलने वाला आन्दोलन खड़ा किया। इस आन्दोलन से किसानों की समस्याओं का कितना निदान हुआ, इसका पता तो आगामी भविष्य में ही चलेगा। इतना तय है कि आन्दोलन के प्रति लोगों की उदासीनता को जरूर तोड़ा है। वामपंथियों के नेतृत्व में चल रहे इस किसान आन्दोलन का हस्र दूसरे किसान आन्दोलनों जैसा नहीं होगा इसके बारे में जानकारों का कहना है कि वामपंथियों के भी राजनीतिक उद्देश्य है। यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर चल रहा किसान आन्दोलन दूसरे आन्दोलनों से अलग है। देखने वाली बात यह है कि यह वामपंथी नेतृत्व आन्दोलन किसानों की लड़ाई को कहां तक ले जात है ? किसानों की समस्याओं का कितना समाधान करात है ? वर्तमान में जिस तरह से किसान आन्दोलनों में वामपंथी विचारधरा वाले लोगों की सक्रियता देखी जा रही है, उससे प्रतीत होता है कि जिले में वामपंथ किसान आन्दोलनों के सहारे अपने लिए जमीन तलाशने में जुटा है।