अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को छोड़ माता प्रसाद पाण्डे को क्यों बनाया नेता प्रतिपक्ष, फैसले के पीछे छिपे हैं कई संकेत
Akhilesh Yadav made Mata Prasad Pandey the leader of opposition leaving uncle Shivpal Yadav, there are many signs hidden behind the decision

Panchayat 24 : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा माता प्रसाद पाण्डे को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता भी पार्टी अध्यक्ष के इस फैसले को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी में इस फैसले से सबसे अधिक असहज शिवपाल सिंह यादव धड़ा महसूस कर रहा है। शिवपाल सिंह यादव को भी इस फैसले से नाराज बताया जा रहा है। कुछ लोग इस फैसले को अखिलेश यादव का मास्टर स्ट्रॉक बता रहे हैं। वहीं, कुछ लोग इस फैसले को अखिलेश यादव के मन में शिवपाल यादव के प्रति आशंकाओं डर की ओर इशारा मान रहे हैं। इसके अतिरिक्त भी इस फैसले के पीछे कुछ राजनीतिक संकेत छिपे हुए मान रहे हैं।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेाश यादव ने लोकसभा चुनाव में कन्नौज से जीज दर्ज करने के बाद मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट से त्याग पत्र दे दिया है। इसके बाद उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से भी त्याग पत्र दिया है। अखिलेश यादव ने सिदार्थनगर की इटवा विधानसभा सीट से पूर्वांचल के ब्राह्मण चेहरे माता प्रसाद पाण्डे को नेता प्रतिपक्ष बनाने का निर्णयलेकर सभी को चौंका दिया। अखिलेश यादव के इस फैसले से पार्टी के अंदर चर्चा तेज हो गई है। दरअसल, नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव, तूफानी सरोज, इंद्रजीत सरोज और राम अचल राजभर भी बने हुए थे। माता प्रसाद पाण्डे समाजवादी पार्टी के बड़ा ब्राह्मण चेहरा हैं। वह दो बार समाजवादी पार्टी की सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। बता दें कि इससे पूर्व अखिलेश यादव ने विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लालबिहारी यादव को बनाया था।
अखिलेश यादव पीडीए पर ब्राह्मण कवच चढ़ाकर 12 फीसदी मतदाताओं को साधना चाहते हैं
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में नई सोशल इंजीनियरिंग पीडीए का प्रयोग करके भाजपा के हिन्दुत्व के एजेंडे को भेदने में कामयाबी हासिल की है। भाजपा को उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में बड़ा झटका लगा है और वह 33 सीटें हासिल करके दूसरे नंबर की पार्टी बनी है। वहीं, समाजवादी पार्टी 37 सीटें हासिल करके बड़ा पार्टी बन गई है। भारतीय जनता पार्टी पर हार के जख्म को भरने का दबाव है। लोकसभा चुनाव के बाद होने वाले उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी पूरी जान झौंकने को तैयार है। वहीं, नई सोशल इंजीनियरिंग में समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यकों को भली भांति साधा है, लेकिन पार्टी पर सवर्ण विरोधी होने का भी आरोप तेज हो गया है। अखिलेश यादव भली भांति जांते हैं कि भारतीय जनता पार्टी उपचुनाव में हिन्दुत्व को नए सिरे से धार देगी। इसमें सवर्ण समाज अहम कड़ी होगी। ऐसे में माता प्रसाद पाण्डे को नेता प्रतिपक्ष बनाकर अखिलेश यादव ने अपने और पार्टी के ऊपर लग रहे सवर्ण विरोधी होने के आरोपों का जवाब दे दिया है। वहीं, उपचुनाव और विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के हिन्दुत्व कार्ड को निष्क्रिय करने के लिए पार्टी के 12 प्रतिशत ब्राह्मण वोट बैंक को साधने के लिए माता प्रसाद पाण्डे पर दांव खेला है।
शिवपाल सिंह यादव को क्यों नहीं बनाया गया नेता प्रतिपक्ष ?
अखिलेश यादव के लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद माना जा रहा था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव को नेता प्रपिपक्ष बनाया जाएगा। लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी। दरअसल, नेता प्रतिपक्ष चुने जाने से पूर्व समाजवादी पार्टी के विधायकों की एक बैठक बुलाई गई थी। बैठक में विधायकों ने नेता प्रतिपक्ष चुनने का अंतिम फैसला पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पर ही छोड़ दी। अन्त में अखिलेश यादव ने माता प्रसाद पाण्डे के नाम पर अंतिम मुहर लगा दी। अखिलेश यादव ने परिवारवाद एवं यादववाद की छवि को तोड़ने के कोशिश की है। इस लिए शिवापाल सिंह यादव को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया गया है। साथ ही उन्होंने पिछड़ों के साथ अगड़ों को साधने का प्रयास किया है।
शिवपाल सिंह यादव धड़ा नाराज
अखिलेश यादव द्वारा माता प्रसाद पाण्डे को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर पार्टी का शिवपाल सिंह यादव धड़ा नाराज है। शिवपाल सिंह यादव समर्थकों का कहना है कि अखिलेश यादव को परिवारवाद एवं यादववाद के आरोपों की याद उस समय नहीं आई जब उन्होंने अपने परिवार के पांच लोगों को लोकसभा चुनाव लड़ाया। सभी सदस्य लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंंच चुके हैं। ऐसे में यदि शिवपाल सिंह यादव जैसे पार्टी के कद्दावर नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता था। बताते हैं कि विधायकों की बैठक के दौरान बैठक के बीच से ही शिवपाल सिंह यादव बैठक छोड़कर चले गए।
शिवपाल यादव को लेकर अखिलेश यादव के मन में आशंका बनी हुई है
दरअसल, यह बात जगजाहिर है समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव युग की समाप्ति के बाद चाचा शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच पार्टी की कमान संभावले के लिए जमकर खींचतान हुई थी। अखिलेश यादव द्वारा पार्टी पर कब्जा किए जाने के बाद शिवपाल सिंह यादव ने नई पार्टी का गठन किया था। अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के संबंधों में भी तनाव रहा था। जानकारों का मानना है कि राजनीतिक मजबूरियों के चलते भले ही दोनों नेताओं ने एक दूसरे को भले ही गले लगा लिया हो, लेकिन अखिलेश यादव के मन में शिवपाल सिंह यादव को लेकर अभी भी आशंका बनी हुई है। यही कारण है कि कई कारणों पर अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव को पार्टी में अहम जिम्मेदारियां नहीं दी दी है। वहीं, पार्टी के बड़े फैसलों पर भी अखिलेश यादव का एकाधिकार है। ऐसे में उनके ऊपर माता प्रसाद पाण्डे के प्राथमिकता देकर नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के फैसले को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। जानकारों का मानना है कि शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी में मजबूत होना अखिलेश यादव धड़ा अपने लिए खतरा मानता है। ऐसे में अखिलेश यादव पार्टी में शक्ति का विकेन्द्रिकरण नहीं होने देना चाहते हैं। नेता विपक्ष जैसे मजबूत पद को वह चाचा शिवपाल यादव के पास नहीं जाने देना चाहते हैं। यदि नेता प्रतिपक्ष पद पर शिवपाल यादव पदासीन होते हैं तो वह पार्टी में मजबूत होंगे। ऐसे में अखिलेश यादव को डर है कि चाचा शिवपाल यादव की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते पार्टी टूटने का खतरा पैदा हो सकता है।