दर्द ए बयां : नोएडा जैसे स्मार्ट और हाईटेक शहर में आम आदमी का दुखड़ा कौन सुनेगा ?
Dard e Bayan: Who will listen to the plight of the common man in a smart and hi-tech city like Noida?

कागज की कश्ती में खतरों भरा सफर, जिम्मेदार मौन, समस्या गौण !
लेखक : नीटू बिशनोई
Panchayat 24 : नोएडा शहर की सड़कों पर ट्रैफिक के हालात बेहद खराब हो चुके हैं। सड़क पर लोगों की यात्रा कब अमंगलकारी हो जाए और लोग हादसों का शिकार हो जाए, यह कोई नहीं जानता। दरअसल, शहर के हालात बेहद खराब हो चुके हैं। सड़कों पर चीटियों की तरह ई-रिक्शा दौड़ रहे हैं। चालक अधिकांश नाबालिग हैं अथवा उनके पास ना तो ड्राइविंग लाइसेंस है ना नियमों का ही पालन करते हैं। छोटे सी ई रिक्शा, जिसका वजन मात्र 170 किलो से 190 किलो तक होता है। यात्रा की दृष्टि से यह कतई भी सुरक्षित नहीं हैं। इनमें हमेशा 9 से 10 लोग, बिना यह विचार किए सफर करते हुए दिख जाते हैं कि उनका सफर कितना असुरक्षित है। शहर में हुए कई हादसों का गवाह ई-रिक्शा बन चुके हैं। वैसे वर्तमान में जो हालात है, यदि एक आम आदमी इन बातों पर विचार करेगा तो वह सफर नहीं कर सकेगा। यदि सड़क पर यात्रा करने के लिए इस जोखिम को नहीं उठाएगा तो वह अपनी और परिवार की दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए काम पर नहीं जा सकेगा। ऐसा नहीं है कि यहां पर महज सार्वजनिक परिवहन के रूप में बसें ही एक समस्या हैं। यहां पर पानी, और सीवर जैसी समस्याएं भी व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रही हैं।
शायद नोएडा को एक मात्र ऐसा तमगा हासिल है जो कहने को स्मार्ट और हाईटेक शहर है लेकिन आम आदमी को सफर करने के लिए सार्वजनिक परिवहन के रूप में बसें भी उपलब्ध नहीं हैं। यदि नोएडा प्राधिकरण द्वारा सिटी बसों को शहर में चलवाया होता तो आए दिन होने वाले हादसों से बचा जा सकता था। निवासी हर दिन अपनी जान को जोखिम में डालने के लिए मजबूर है। यह एकमात्र ऐसा प्लान सिटी है जहां ना तो सिटी बस ही निवासियों को मिल पा रही है ना ही स्वच्छ जल। पार्को के हालात हर दिन खराब होते जा रहे हैं।
इनमें सफर करना ई-रिक्शा के सफर की अपेक्षा कुछ सुरक्षित था। अब ई रिक्शा ने शहर में धीरे-धीरे थ्री व्हीलर का स्थान ले लिया है। शायद व्यवस्था भी यही चाहती है। लेकिन यहां महत्वपूर्ण सवाल थ्री व्हीलर और ई-रिक्शा चालकों को लेकर है। थ्री व्हीलर चलाने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होती थी, जिसके कारण उनके मन में ट्रैफिक नियमों का पालन करने का डर होता था। अन्यथा वह सजा अथवा जुर्माने के हकदार होते थे। लेकिन ई-रिक्शा चालाकों के लिए किसी भी तरह के लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
ऐसे में गाहें बाहें हमको नौसिखियें और नाबालिग ई-रिक्शा चलाते हुए दिख जाते हैं। यह लोग शहर की तंग गलियों से लेकर हाईवे और एक्सप्रेस-वे पर ई-रिक्शा दौड़ा रहे हैं। इन्हें सड़क पर वाहन चलाने के लिए आवश्यक यातायात नियमों की कितनी जानकारी होगी यह बताने की जरूरत नहीं है। इनकी मनमानी का क्या आलम है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि गलियों, सड़कों, एक्सप्रेस-वे और हाईवे पर जहां चाहा इनके द्वारा कब्जा जमा दिया जाता है। ई-रिक्शा संचालन को नियमित करने की भी कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में इनकी संख्या कुकुरमुत्तों की तरह सड़क पर बढ़ रही है। परिणामस्वरूप सड़कों पर दूसरे वाहन चालकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
लेखक एक वरिष्ठ अधिवक्ता है। सामाजिक समस्याओं को नजर रखते है।