चिटेहरा जल संकट पार्ट-2 : शहर को गंगाजल पिलाने के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने बर्बाद कर दिया ग्रामीणों के हिस्से का पानी
Chitehra water crisis part-2: Greater Noida Authority wasted the villagers' share of water to provide Gangajal to the city

Panchayat 24 : दादरी क्षेत्र के चिटेहरा गांव में गहराए जल संकट के लिए जितनी ग्रामीणों की जल संरक्षण को लेकर उदासनता और लापरवाही जिम्मेवार हैं, उससे कहीं अधिक ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की भूमिका है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने ग्रेटर नोएडावासियों को गंगाजल पिलाने के लिए चिटेहरा तथा आसपास के गांवों के लोगों के हिस्से का पानी छीन लिया है। प्राधिकरण पर आरोप है कि गंगाजल की आपूर्ति के दौरान प्राधिकरण द्वारा कुछ ऐसा काम किया गया जिसका परिणाम चिटेहरा और आसपास के गांवों को भुगतना पड़ रहा है।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, दादरी विकास खण्ड के चिटेहरा गांव में कई नलों ने पानी देना बदं कर दिया है। चिंता का मुख्य कारण है कि कुछ ऐसे मामले में प्रकाश में आए हैं जहां 120 फीट पर लगे सबमर्सिबल पंपों ने भी पानी देना बंद कर दिया है। चिटेहरा गांव पर गहराए इस जल संकट के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की भूमिका भी सामने आई है।
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने ग्रेटर नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट के लोगों के लिए गंगाजल की आपूर्ति की योजना बनाई थी। प्राधिकरण ने इस योजना को धरातल पर उतारने के लिए गंगनहर से गंगाजल की आपूर्ति करनी थी। गंगाजल को पाइप लाइन गाजियाबाद के देहरा से शुरू होकर पल्ला गांव स्थित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट तक लाए जाने की योजना थी। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की अति महत्वकांक्षी गंगाजल पाइप लाइन परियोजना लगभग 18 किमी लंबी का सफर तय करके पल्ला स्थित ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंचना था। यह परियोजना पूर्ण हो चुकी है। जिस समय यह पाइप लाइन बिछाई जा रही थी, कई स्थानीय लोगों ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ग्रेटर नोएडा द्वारा किए जा रहे काम की कीमत देर सवेर कई गांवों को चुकानी पड़ेगी। हालांकि इन लोगों की बातों को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन चिटेहरा गांव में गहराए जल संकट के बाद इन लोगों की बातें सत्य साबित होने लगी है।
बता दें कि ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा गंगाजल पाइप लाइन को दहरा से पल्ला ट्रीटमेंट प्लांट तक लाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार किया गया था। इसकी नींव को मजबूत करने के लिए बड़ी संख्या में बड़े बड़े बोरिंग करके भूजल का दोहन किया गया था। ऐसे ही सैकड़ों बोरिंग चिटेहरा गांव की सीमा में किए गए थे। इन बोरिंग को सप्ताह भर से अधिक समय तक दिन रात संचालित करके भूजल का दोहन किया गया था। इस दिन रात भूजल को बड़े पैमाने पर नहर में बहाया गया था।
मामले की शासन एवं प्रशासन स्तर पर हुई शिकायत, नहीं हुई सुनवाई
इस मामले को सबसे पहले चिटेहरा गांव निवासी एडवोकेट संदीप भाटी द्वारा उठाया गया। संदीप भाटी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्कालीन जिलाधिकरी से मामले की शिकायत करते हुए भूजल दोहन पर रोक लगाए जाने की मांग की थी। उनका मानना था कि यदि भूजल दोहन पर जल्द रोक नहीं लगी तो गांव का भूजल स्तर तेजी से नीचे चला जाएगा। इसके गंभीर परिणाम गांव के लोगों को भुगतने होंगे। संदीप भाटी के अनुसार जिलाधिकारी बीएन सिंह ने ग्रेटर नोएडा से मामले पर जवाब मांगा था। इसके बाद कार्रवाई प्रशानिक स्तर पर दबकर रह गई। बाद में उन्हेंने मामले की शिकायत मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल पर भी मामले की शिकायत की थी। कई समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित भी किया था। भूजल दोहन के इस अपराध के केन्द्र में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण था, शायद इसी लिए कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सकी। बता दे कि जिस समय ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा इस कार्य को किया जा रहा था, एनजीटी ने भूजल के दोहन पर रोक लगाई हुई थी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इस संबंध में भूजल विभाग के गौतम बुद्ध नगर खंड में तैनात हाईड्रोलॉजिस्ट अंकिता राय का कहना है ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा गंगाजल पाइप लाइन को बिछाने के लिए यदि बोरिंग करके भूजल का बड़े पैमाने पर दोहन किया है तो यह एक चिंता का विषय है। इसके दुष्परिणाम आसपास के गांवों को भुगतने पड़ेंगे। हो सकता है कि अभी इस पाइप लाइन के आसपास के गांवों में जल संकट के दुष्परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं अथवा बहुत कम परिणाम सामने आ रहे हैं, लेकिन यह तय है कि निकट भविष्य में दुष्परिणाम सामने आने तय है। उन्होंने कहा कि प्राधिकरण इतनी बड़ी संख्या में बोरिंंग करके भूजल का दोहन करके शुद्ध पानी को नहर में बहाकर कानूनों का उल्लंघन भी किया है। प्राधिकरण ने इस संबंध में भूजल विभाग से काई अनुमति भी नहीं ली थी। वहीं, यह एनजीटी के आदेशों का भी उल्लंघन था।
वहीं, पर्यावरणविद विक्रांत तौंगड का कहना है कि गंगाजल पाइप लाइन को अंडरग्राउंड बिछाने के लिए भूजल दोहन की हमे सूचना मिली थी। हमने अपनी टीम को लिए देहरा से पल्ला वाटर ट्रीटमेंट प्लांट तक इसका मौका मुआयना भी किया था। हमने देखा था कि चिटेहरा गांव के पास भूजल का दोहन करके सीमेंट एवं कंक्रीट करके फाउंडेशन तैयार कर रहे थे। बोरिंग करके भूजल को नहर में बड़ी मात्रा में पानी बहाया जा रहा था। हमने इस पर आपत्ति भी जताई थी। यह खुल्लम खुल्ला एनजीटी के आदेशों का उल्लंघन था। बता दें कि गौतम बुद्ध नगर उन जिलों में शामिल हैं जहां पर जल संकट पैदा हो गया है। जहां तक चिटेहरा गांव का मामला है तो हमने इस संबंध में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को इस संबंध में सूचना दी थी। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
सिंचाई विभाग को इस बारे में अवगत कराया गया। सिंचाई विभाग ने बिना अनुमति के नहर में इतने बड़े पैमाने पर पानी बहाने को लेकर मुकदमा भी दर्ज किया था। भूजल कुछ रूका जरूर लेकिन अवैध रूप से चल काम चलता रहा। यह कोविड के दौरान का मामला है। ऐसे में प्राधिकरण ने इस महामारी के बाद पैदा हुए हालातों का भी लाभ उठाया। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस अंधाधुंध भूजल दोहन के दुष्परिणम चिटेहरा गांव के सामने आ रहा है। हो सकता है कि जल स्तर पहले से ही घट चुका था लेकिन गर्मी के मौसम में यह समस्या सामने आई है। प्राधिकरण द्वारा जमीन में बोरिंग करके जो भूजल दोहन किया गया है इससे जमीन के अंदर पानी का जो चैनल बना होता है उसको प्रभावित कर दिया है। इसका मुख्य कारण जमीन में बिछाया गया कंक्रीट भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में देखने में आता है कि एक ही गांव के कुछ स्थानों पर पानी का जल स्तर नीचे चला जाता है, वहीं दूसरे स्थानों पर ऐसी स्थिति नहीं होती है। यह जांच का विषय है।