नोएडा प्राधिकरण

नोएडा गोल्‍फकोर्स के निर्माण में देरी पर कंपनी ब्‍लैकलिस्‍ट, एफआईआर दर्ज, परियोजना हुई है भ्रष्‍टाचार का शिकार !

Company blacklisted for delay in construction of Noida Golf Course, FIR lodged, project has become victim of corruption!

Panchayat 24 : नोएडा प्राधिकरण के सीईओ लोकेश एम ने सोमवार को सेक्‍टर-151 में बन रहे अन्‍तर्राष्‍ट्रीय गोल्‍फ कोर्स का निरीक्षण किया। मौके पर गोल्‍फ कोर्स का निर्माण कार्य पूरी तरह से बंद पड़ा हुआ था। गोल्‍फ कोर्स निर्माण में बरती जा रही उदासीनता के चलते सीईओ ने निर्माण कंपनी मैसर्स कश्‍यपी इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्राइवेट लिमिटेड से अनुबंध समाप्‍त कर दिया है। कंपनी को ब्‍लैकि‍लस्‍ट करते हुए उसके खिलाफ एफआई आर दर्ज कराई है। गोल्‍फ कोर्स निर्माण के शेष कार्य को पूरा करने के नई आरएफपी जारी की जाएगी। सवाल उठता है क्‍या यह केवल कर्तव्‍यपालन में उदासीनता और लापरवाही का ही मामला है या फिर भ्रष्‍टाचार परियोजना को निगलने में लगा था। ऐसे में परियोजना से जुड़े प्राधिकरण के अधिकारियों, कर्मचारियों और निर्माणकर्ता एजेंसी के भ्रष्‍टाचार की भी जांच होनी चाहिए।

यदि परियोजना पर ध्‍यान दे तो पता चलता है कि शुरूआत से ही अन्‍तर्राष्‍ट्रीय गोल्‍फ कोर्स की निर्माणकर्ता कंपनी और प्राधिकरण के अधिकारियों का रवैये के कारण लापरवाही एवं उदासीनता का शिकार रहा है। परियोजना की कुछ जमीन अभी भी अधिग्रहित होना शेष है। जिला प्रशासन इसके अधिग्रहण की कार्रवाई कर रहा है। इसके लिए लगभग ढाई हेक्‍टेयर जमीन ली जानी है। जुलाई 2021 में लगभग सौ करोड़ की लागत से लगभग 113.83 एकड़ में अन्‍तर्राष्‍ट्रीय गोल्‍फकोर्स परियोजना के निर्माण का काम शुरू हुआ था। निर्माण कार्य सिंतंबर 2022 तक पूरा होना था लेकिन तय समय सीमा तक केवल 68 फीसदी काम ही पूरा हो सका था। इंजीनियरों की अतिरिक्‍त मांग पर 40 करोड़ रूपये जारी किए गए। इसकी लागत बढ़कर 140.08 करोड़ हो गई।

इस प्रकरण में वर्क सर्किल दस के इंजीनियरों को भी नोटिस जारी किया गया है। लेकिन अभी यह तय नहीं हो सका है कि उनके ऊपर को कोई कार्रवाई होगी अथवा नहीं। सीईओ द्वारा निर्माणकर्ता कंपनी के खिलाफ की गई कार्रवाई उचित है। लेकिन इस परियोजना से जुड़े प्राधिकरण के जिम्‍मेवार लोगों को बिना कार्रवाई के दायरे में लाए कार्रवाई का उद्देश्‍य पूरा नहीं होगा। हालांकि सीईओ द्वारा मामले में वर्क सर्किल दस के इंजीनियरों से मांगे गए जवाब के उत्‍तर में कहा है कि एजेंसी को लगातार नोटिस जारी किए गए थे। इसके बावजूद मौके पर संविदाकार श्रमिकों की संख्‍या नहीं बढ़ाई गई।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्‍या ऐसा हो सकता है कि अन्‍तर्राष्‍ट्रीय गोल्‍फ कोर्स जैसी अतिमहत्‍वपूर्ण परियोजना के निर्माण कार्य में देरी चल रही हो और प्राधिकरण के जिम्‍मेवार लोगों और वर्क सर्किल को इस बारे में कोई सूचना ही नही है ? यदि सूचना थी तो इसके बारे में वरिष्‍ठ अधिकारियों को जानकारी क्‍यों नहीं दी गई ? इस पूरे प्रकरण में प्राधिकरण के लोगों की मिलीभगत की भी जांच होनी चाहिए । उनकी उदासीनता के कारण जहां महत्‍वपूर्ण परियोजना अपने समय से बनकर तैयार नहीं हो सकी है, वहीं करोड़ों का खर्च भी बढ़ा है। यह प्राधिकरण पर अतिरिक्‍त बोझ है। अक्‍सर देखने में आता है कि निर्माणकर्ता कंपनी प्राधिकरण के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को खुश करके ही अपने मुनाफे को बढ़ाती है।

ऐसे में प्राधिकरण के वर्क सर्किल दस के इंजीनियरों से लेकर वरिष्‍ठ प्रबंधक तक की भूमिका की जांच होनी चाहिए। जून 2024 में प्राधिकरण के एसीईओ संजय खत्री तथा अन्‍य अधिकारियों ने भी निरीक्षण के दौरान परियोजना का काम धीमी गति से चलना पाया था। इसके बावजूद वर्क सर्किल अधिकारी एवं निर्माणकर्ता कंपनी का रवैया परियोजना के निर्माण कार्य को लेकर उदासीनता पूर्ण रहा। जांच में दोषी पाए गए अधिकारियों और निर्माणकर्ता कंपनी से परियोजना के निर्माण में प्राधिकरण को हुए आर्थिक नुकसान (निर्माण में हुई देरी के कारण बढ़े खर्च) की भरपाई करना चाहिए। केवल नोटिस जारी करने से कोई परिणाम नहीं निकलेगा। प्राधिकरण को इस बात का भी ध्‍यान रखना होगा कि दोषी कश्‍यपी इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्राइवेट लिमिटेड रूप बदलकर फिर से प्राधिकरण में प्रवेश पाने में कामयाब न हो जाए।

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