बदहाली की दास्ता बयां कर रहा है नोएडा सेक्टर-135 स्थित तालाब, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने भी नहीं ली सीख
The pond in Noida Sector-135 is telling the story of its miserable condition, even Greater Noida Authority has not learnt any lesson

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : प्रकृति द्वारा मानव को दी गई अनमोल धरोहरों में से पानी अमूल्य है। मानव जीवन में पानी की महत्ता का धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में जगह जगह वर्णन किया गया है। रहीमदास ने भी लिखा है रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥ राजा महाराजाओं के समय में जल संरक्षण के लिए तालाब अहम माध्यम बना रहा। गौतम बुद्ध नगर में औद्योगिक विकास प्राधिकरणों ने देर से ही सही जल संरक्षण के लिए तालाबों पर ध्यान दे रहे हैं। इनके लिए प्राधिकरण अच्छा खासा खर्च भी कर रहे हैं।
ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण जलालपुर गांव के पास दस एकड़ जमीन पर दो तालाब विकसित करेगा। यहां प्राधिकरण द्वारा जल संरक्षण के लिए तालाबों के महत्व को तवज्जो देने की दिशा में एक अच्छी पहल हो सकती है, लेकिन यहां व्यवहारिकता का अभाव प्रतीत हो रहा है। नए तालाब बनाने में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को अधिक संसाधन व्यय करने होंगे, जबकि ग्रेटर नोएडा अधिसूचित क्षेत्र में कुल 282 तालाबों में से 12 तालाब अपना अस्तित्व खो चुके हैं। लगभग 50 से अधिक तालाब अतिक्रमण के कारण बदहाल स्थिति में हैं। जबकि शेष अधिकांश तालाब भी अतिक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। ऐसे में पुराने तालाबों की दशा सुधाने के स्थान पर नए तालाब बनाने का प्राधिकरण का फैसला अतार्किक है।
जमीन की उपलब्धता की किल्लत झेल रहे ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के लिए बेहतर होगा कि नए तालाबों के निर्माण के स्थान पर पुराने तालाबों की हालात में ही सुधार किया जाए।
सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एण्ड एनवायरमेंट (सेफ) ने प्राधिकरण को दोनों तालाबों के लिए प्रस्ताव दिया था। बताया जा रहा है कि इन तालाबों का विकास प्राधिकरण सेफ की मदद से करेगा। सवाल उठता है क्या ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने पूर्व में जिले में प्राधिकरणों द्वारा बनाए गए सभी तालाबों की स्थिति का अनुभव किया है ? नोएडा प्राधिकरण द्वारा भी सेक्टर- 135 में एक ऐसे ही ताबाब का निर्माण किया गया है। इसका रखरखाव पर्यावरणविद संस्था के जिम्मे है। इसके लिए कोफोर्ज फंड मुहैया कराती है। अमृत सरोवर नामक यह तालाब लगभग आठ एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। प्राधिकरण द्वारा इस तालाब का गुणगान किया जाता है।
पंचायत 24 की टीम ने वास्तविकता को जानने के लिए तालाब का भ्रमण किया। तालाब के चारो ओर तारो की रेलिंग एवं फैंसिंग की गई थी जो जगह जगह से क्षतिग्रस्त है। जगह जगह तालाब से संबंधित सूचना देने वाले बोर्ड टेंगे हुए हैं। यहां लगे सोलर पैनल क्षतिग्रस्त होने के कारण काम नहीं कर रहे हैं। नोएडा प्राधिकरण के जल विभाग के महाप्रबंधक आर पी सिंह ने बताया कि तालाब को भरने के लिए प्रतिदिन 50 एम एल डी पानी दिया जा रहा है। यह शहर के सीवर का शोधित पानी है जिसे किलोमीटरों लंबी पाइप लाइन बिछाकर यहां तक पहुंचाया गया है। इस पर भारी रकम खर्च की गई है। प्राधिकरण के भागीरथी प्रयासों के बबावजूद यह नहीं कहा जा सकता है कि तालाब कब तक पानी से भर जाएगा ?
कई बार पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ताओं और एनजीओ द्वारा कानून की बारीकियों के सहारे प्राधिकरणों के कामों को प्रभावित किया जाता रहा है। ऐसे में इनके प्रस्ताव पर प्राधिकरणों द्वारा मुहर लगाने पर कई तरह की आशंकाएं पैदा होती हैं। सवाल उठता है कि क्या तथाकथित पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ताआ और एनजीओ को तुष्ट करने के लिए प्राधिकरण इनके पक्ष में फैसले लेते हैं ? ऐसा करके प्राधिकरण इनसे अपना पीछा छूड़ाने का प्रयास करते हैं ? जानकारों की माने तो लोकहित से जुड़े कार्यों को करने के नाम पर सीएसआर से अच्छी खासी आर्थिक मदद मिल जाती है। लोग व्यक्तिगत आधार पर भी ऐसे कार्यों को आर्थिक मदद करने के लिए आगे आते हैं। तालाबों के संरक्षण एवं विकसित करने का खेल भी इसी से जुड़ा हुआ है।
इस तालाब का संबंध उसी सोशल एक्शन फॉर फॉरेस्ट एण्ड एनवायरमेंट (सेफ) से है जिसके प्रस्ताव पर ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा जलालपुर गांव के पास दो नए तालाबों को विकसित करने का निर्णय लिया है। सेक्टर-135 स्थित इस तालाब की प्रासंगिकता पर सवाल उठता है। जानकारों का मानना है कि ऐसे तालाब तथाकथित पर्यावरणविदों, समाजसेवियों और स्वयंसेवी संगठनों के लिए कमाई के अवसर जरूर पैदा होते हैं। प्राधिकरणों का उद्देश्य इससे कितना पूरा होता है यह बता पाना मुश्किल है।