कैलाश गहलोत ने आम आदमी पार्टी को जोर का झटका धीरे से दे दिया, अरविन्द केजरीवाल हुए निरूत्तर, भाजपा को कितना होगा फायदा ?
Kailash Gehlot gave a strong blow to Aam Aadmi Party, Arvind Kejriwal became speechless, how much will BJP benefit?

डॉ देवेन्द्र कुमार शर्मा
Panchayat 24 : दिल्ली सरकार में मंत्री और आम आदी पार्टी के कद्दावर नेता कैलाश गहलोत का मंत्री पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देना और भाजपा में शामिल होना दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व किसी बड़ी राजनीतिक पठकथा का हिस्सा है ? क्या यह घटना आम आदमी पार्टी में अरविन्द केजरीवाल के वन मैन शो के खिलाफ पनपप रही बगावत का परिणाम है ? क्या आम आदमी पार्टी दिल्ली की जनता को दिखाए गए सुन्दर सपनों के जाल में खुद उलझ गई है जिसको उसने बड़े-बड़े वायदे करके खुद ही तैयार किया है ?
दिल्ली में आगामी 6 महीनों में विधान सभा चुनाव होने हैं। ऐसे में कैलाश गहलोत प्रकरण राजनीति की किसी पठकथा का हिस्सा है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। दिल्ली की सत्ता से लंबे समय से दूर रहकर छटपटाहट महसूस कर रही भाजपा इसका अवश्यक लाभ उठाना चाहेगी। कैलाश गहलोत को पार्टी में शामिल करके इसके संकेत भी दे दिए हैं। यह आने वाला समय ही बताएगा कि भाजपा को इसका कितना लाभ मिलता है। इस प्रकरण से हुए नुकसान की भरपाई के लिए आम आदमी पार्टी की ओर से भाजपा द्वारा कैलाश गहलोत के खिलाफ सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों के दुरूपयोंग का आरोप भले ही लगाया जाए लेकिन इसके पीछे दूसरे अहम कारण कुछ और ही हैं। इन्हें आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल के कारण पैदा हुए हैं।
दअरसल, अरविन्द केजरीवाल को पार्टी पर अपनी मजबूत पकड़ और दिल्ली सरकार को मनमाने तरीके से चलाने के लिए कटपुतलियों की आवश्यकता है। पार्टी के गठन से लेकर अभी तक कई ऐसे पार्टी नेता जो अरविन्द केजरीवाल के फ्रेम में फिट नहीं बैठ सके, उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी है। जिस तरह से एलजी के साथ बेहतर तालमेल बैठाकर कैलाश गहलोत ने अपने विभागों का काम आगे बढ़ाया, इसके बाद वह अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के सिंडीकेट को चुभने लगा लगे थे। यही कारण था कि एक मंच से अरविन्द केजरीवाल ने कहा था कि उन्होंने 15 अगस्त पर झंडा फहराने के लिए आतिशी के लिए एलजी को चिट्टी लिखी थी, लेकिन एजली ने कैलाश गहलोत को इसके लिए अनुमति दी। इस बयान ने जहां कैलाश गहलोत के मन में अपमान का भाव पैदा किया।
वहीं, कैलाश गहलोत के प्रति पार्टी में भाजपा के करीबी होने का नजरिया पैदा हो गया। अरविन्द केजरीवाल सहित पार्टी के दूसरे नेता कैलाश गहलोत को शंकालु नजर से देखने लगे। उनसे कई अहम विभागों को लेकर आतिशी को सौंप दिया गया। वहीं, कैलाश गहलोत से अनुभव और उम्र में बहुत कम आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर दिया गया। इस बात ने भी कैलाश गहलोत के जख्म मो बढ़ा दिया। वह समझ चुके थे कि पार्टी धीरे धीरे उनसे पीछा छुडाना चाहती है। उनके विकल्प की भी तलाश की जा रही है। ऐसे में कैलाश गहलोत ने मौका देखकर अपना दांव चल दिया। उनके कदम को एक बगावत के रूप में देखा जा रहा है। हाल ही में स्वाति मालीवाल प्रकरण और दिल्ली मेयर चुनाव में भी पार्टी के पार्षदों द्वारा की गई क्रॉस वोटिंग भी पार्टी से बगावत से जोड़कर देखा जा रहा है। अरविन्द केजरीवाल इस बगावत के परिणाम को महसूस कर रहे हैं लेकिन कुछ उपाय नहीं सूझ रहा है। वह यह भी समझ रहे हैं कि यह बगावत आगामी विधानसभा चुनावों में भारी पड़ सकती है।
यह बात कोई ढकी छिपी हुई नहीं है कि जिस राजनीति को आम आदमी पार्टी बदलने आई थी, धीरे-धीरे उसी राजनीति का हिस्सा बन गई है। पिछले एक दशक में दिल्ली वालों को आम आदमी पार्टी ने जिस स्वर्ग के सपने दिखाए। लेकिन वह अभी तक कोरी कल्पना ही हैं। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की जनता को फ्री पानी, फ्री बिजली देकर एक वर्ग के बीच लोकप्रियता जरूर हासिल की है। लेकिन अब दिल्ली की जनता दो दशक सत्ता में रहने के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार से वह सबकुछ चाहती है जिसका वायदा किया गया था। दिल्ली को पेरिस बनाना, हर नल से जल, रोजगार और यमुना की सफाई जैसे कई अहम मुद्दे आज भी वहीं हैं। दिल्ली के हालात बताते है कि विकास की गति बहुत धीमी रही है। इसका आम आदमी पार्टी की सरकार पर भारी दबाव है।
अरविन्द केजरीवाल सहित पार्टी के कई नेताओं को भ्रष्टाचार के चलते जेल जाना पड़ा। यह पार्टी की कट्टर ईमानदार वाली छवि को बड़ा झटका है। कैलाश गहलोत ने भी पार्टी के अंदर निजी एजेंड़े को आगे बढ़ाने और शीश महल जैसी बातों का जिक्र कर कुछ ऐसे ही आरोप त्याग पत्र देने के बाद आम आमदी पार्टी पर लगाए हैं। हालांकि आम आदमी पार्टी यह तर्क रख सकती है कि कोर्ट से उन्हें सभी मामलों में जमानत मिल चुकी है, लेकिन यह भी सत्य है कि जमानत किसी मामले में निर्दोष साबित करने का आधार कतई नहीं है। ऐसे में दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व आम आदमी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को टूट से बचाना और पार्टी नेताओं को बांधे रखना है। बेहतर होगा कि आम आदमी पार्टी आरोपों की राजनीति के बजाय यह प्रयास करें कि अब कोई स्वाति मालीवाल और कैलाश गहलोत पार्टी को छोड़कर न जाएं।
कैलाश गहलोत प्रकरण के बाद आम आदी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री के बारे में वर्तमान हालातों के बारे में बस यही कहा जास सकता है – ग़ालिब ताउम्र ये भूल करता रहा धूल चेहरे पर थी, आईना साफ करता रहा