स्पेशल स्टोरी

किसी चमत्‍कार से कम नही है ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के कर्ज में डूबने से कर्ज से उबरने तक की कहानी

The story of Greater Noida Industrial Development Authority from drowning in debt to recovering from debt is no less than a miracle

डॉ देवेन्‍द्र कुमार शर्मा

Panchayat 24 : गौतम बुद्ध को उत्‍तर प्रदेश की शो विंडो बनाने में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण की महत्‍वपूर्ण भूमिका है। प्राधिकरण ने विश्‍वस्‍तरीय सुविधाओं से सुसज्जित शहर बसाया है। यहां विस्‍वस्‍तरीय उद्योग, आईटी पार्क, सैकड़ों बिल्‍डर सोसायटी, शिक्षण संस्‍थाएं एवं आधुनिक वाणिज्यिक केन्‍द्र मौजूद है। यहां विकास तेजी से पटरियों पर दौड़ रहा है। लेकिन पिछले एक दशक में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने बुरा दौर देखा है। इस दौर में आर्थिक विकास लगभग ठप पड़ गया था। प्राधिकरण के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था। सकंट से उबरने के लिए विभिन्‍न बैंकों एवं संस्‍थानों से कर्ज लिया गया। ब्‍याज ने कर्ज की समस्‍या को अधिक विकराल बना दिया। हालात यहां तक पहुंच गए थे कि एक कर्ज को चुकाने के लिए प्राधिकरण को अधिक ब्‍याज पर दूसरा कर्ज लेना पड़ा था।

मैनेजमेंट एवं फाइनेंस स्‍टडी के छात्रों के लिए एक शानदार केस स्‍टडी 

वर्तमान में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण न केवल कर्ज के बोझ से लगभग मुक्‍त हो चुका है। वहीं, उसके पास साढे सात हजार करोड़ रूपये की भारी भरकम रकम फिक्‍स डिपोजिट के रूप में भी मौजूद है। इस फिक्‍स डिपोजिट से मिलने वाली रकम से ही प्राधिकरण विकास के बड़े- बड़े काम कर रहा है। इतना ही नहीं एफडी से मिलने वाले ब्‍याज से शेष कर्ज की अदायगी भी आसान हो गई है। ग्रेटर नोएडा की कर्ज में डूबने से लेकर कर्ज से उबरने तक की यह कहानी मैनेजमेंट एवं फाइनेंस के छात्रों के लिए एक शानदार केस स्‍टडी है।

ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण की स्‍थापना का उद्देश्‍य

दरअसल, ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण एक स्‍वायत्‍त संस्‍था है। इसकी स्‍थापना औद्योगिक विकास के लिए No profit, No loss के आधार पर हुई है। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण औद्योगिक विकास को गति प्रदान करने के लिए नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण का ही विस्‍तृत रूप है। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने औद्योगिक विकास के लिए तेजी से किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया। औद्योगिक विकास के साथ नगरीय विकास को भी तेज किया गया। दिल्‍ली के करीब होने के कारण विकास की तमाम संभावनाओं को देखते हुए लोगों ने ग्रेटर नोएडा को पसंद किया।

भ्रष्‍टाचार और किसान आन्‍दोलनों ने शुरूआत से ही प्राधिकरण के सामने पेश की चुनौती

हालांकि इसका एक पहलू यह भी था कि यहां विकास के साथ भूमि अधिग्रहण, विशेषकर मुआवजा राशि के लिए किसानों के आन्‍दोलन, प्राधिकरण में भ्रष्‍टाचार और क्षेत्र में अपराधिक वारदातें भी बढ़ रही थी। घोड़ी बछैड़ा किसान आन्‍दोलन के रूप में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के इतिहास में गौतम बुद्ध नगर के लोगों ने पहली बार किसान आन्‍दोलन का खूनी रूप भी देखा। इसके बावजूद ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने विश्‍व पटल पर अपनी पहचान बनाने में सफलता पाई। यही कारण था कि सफेदपोशों और नौकरशाहों की नजर भी इस संस्‍था पर पड़ चुकी थी। अब सत्‍ता के गलियारों में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकण एक कमाऊ और मलाईदार संस्‍था के रूप में अपनी पहचान बना चुका था।

गजराज सिंह VS उत्‍तर प्रदेश सरकार केस से प्राधिकरण को लगा तगड़ा झटका

ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने गौतम बुद्ध नगर विश्‍वविद्यालय, गौतम बुद्ध नगर राजकीय आयु‍र्विज्ञान संस्‍था और क्षेत्रीय विकास पर हजारों करोड़ खर्च किए थे। इसी बीच साल 2011 में भूमि अधिग्रहण को लेकर गजराज सिंह नामक याचिकाकर्ता के मामले में हाईकोर्ट का फैसला अहम साबित हुआ। गजराज सिंह मामले में हाईकोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता को दिए गए लाभ को पाने के लिए बड़ी संख्‍या में किसानों ने हाईकोर्ट का रूख किया। ग्रेटर नोएडा की अधिग्रहण प्रक्रिया एक दम रूक गई और विकास पर लगाम लग गई। हाईकोर्ट ने किसानों को अतिरिक्‍त 64.7 प्रतिशत मुआवजा दिए जाने एवं 10 प्रतिशत विकसित भूखंड दिए जाने का आदेश दिया। यहां से ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण का पहिया पटरी से उतर गया। रही सही कसर कोरोना काल में पूरी हो गई। विकास योजनाएं अधर में लटक गई। नई योजनाएं लगभग बंद हो गई। गजराज सिंह प्रकरण से ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण को तगड़ा झटका लगा।

प्राधिकरण को विकास को आगे बढ़ाने के लिए लेना पड़ा सात हजार करोड़ का कर्ज

शहर और औद्योगिक विकास के लिए बेहतर कनेक्टिविटी के लिए मेट्रो को चुना गया। नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए भी अपना हिस्‍से की रकम के भारी भरकम भाग का भुगतान किया गया है। इससे प्राधिकरण पर कर्ज का भार बहुत अधिक बढ़ि गया। प्राधिकरण द्वारा मेट्रो और एचटीपी के लिए एनसीआरपीबी से 631 करोड रूपये का कर्ज लिया गया। वहीं, नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण से किसानों को बढ़ा हुआ अतिरिक्‍त मुआवजा एवं ढांचागत विकास की गति बढ़ाने के लिए 4091.91 करोड रूपये का कर्ज लिया गया। इसके अतिरिक्‍त यूबीआई, एचडीएफसी और बैंक ऑफ बडौदा जैसे निजी बैंकों से 2500 करोड़ रूपये का कर्ज लिया गया। साल 2023 आते आते यह कर्ज लगभग आठ हजार करोड़ पहुंच चुका था।

साल 2023 में एनजी रवि कुमार को मिली ग्रेटर नोएडा की कमान

उत्‍तर प्रदेश के लिए ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण प्रमुख माध्‍यम था। लेकिन प्राधिकरण के भ्रष्‍टाचार, तत्‍कालीन अधिकारियों की गलत नीतियों और सरकारों के अनावश्‍यक दखल के कारण ग्रेटर नोएडा औद्यागिक विकास प्राधिकरण की बदहाली की कहानी के बारे में उत्‍तर प्रदेश सरकार को भी पता था। सरकार किसान, बिल्‍डर-बायर और भ्रष्‍टाचार की समस्‍या के समाधान के लिए लगातार प्रयास कर रही थी। इस कड़ी में जुलाई 2023 में गोरखपुर के कमिश्नर एनजी रवि कुमार को ऋतु महेश्‍वरी के स्‍थान पर ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण का सीईओ बनाकर भेजा गया। हालांकि शुरूआती चरण में एनजी रवि कुमार ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण की समस्‍याओं के चक्रव्‍यू में फंसे हुए नजर आए। सीईओ का पदभार संभालते ही बड़े किसान आन्‍दोलन, किसानों के लंबित मुद्दे, बिल्‍डरों की मनमानी और प्राधिकरण के अधिकारियों और कर्मचारियों के भ्रष्‍ट आचरण के सामने वह असहाय ही नजर आए। फिर अपने प्रशासनिक अनुभव का लाभ लेते हुए उन्‍होंने परिस्थितियों को बेहतर तरीके से समझना शुरू किया। समस्‍याओं के कारणों को जाना और उनके समाधान के लिए धरातल पर प्रयास शुरू किए। परिणामस्‍वरूप आज ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के पास अपनी लगभग हजारों करोड़ की जमा पूंजी है। अभी तक जहां ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण का बजट घाटे का होता था, अब प्राधिकरण का बजट प्रस्‍तावित खर्च से बचत कहीं अधिक होती है।

साल 2024-25 का ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण का आय व्‍यय का ब्‍यौरा

ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के नए सीईओ के सामने प्राधिकरण का लगभग आठ हजार करोड़ रूपये का कर्ज बड़ी चुनौती था। उन्‍होंने अपने अनुभव, रणनीति और योजनाबद्ध तरीके के आधार पर चुनौतियों से पार पाया। इसका अनुमान साल 2024-25 के प्राधिकरण के आय-व्‍यय से पता लगाता है। साल 2024-25 में प्राधिकरण ने बजट में 4885.90 करोड़ खर्च का प्रावधान किया। इसके सापेक्ष प्राधिकरण को 5806.90 करोड़ की आमदनी हुई। वहीं, प्रस्‍तावित खर्च के सापेक्ष प्राधिकरण ने महज 1957.31 करोड़ रूपये ही खर्च किये। ऐसे में प्राधिकरण को इस साल कुल 3,849.59 करोड़ रूपये की बचत हुई। जबकि प्राधिकरण हर साल कर्मचारियों के वेतन पर 75 करोड़ रूपये, नागरिक सुविधाओं (हेल्‍थ, सेनीटाइजेशन तथा अन्‍य) पर 80 से 90 करोड़ सालाना और और टाउनशिप के बिजजी तथा अन्‍य सेवाओं पर 50 करोड़ रूपये सालाना खर्च कर रहा है। वहीं, वर्तमान में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के ऊपर एनसीआरबी का महज 321 करोड़, नोएडा प्राधिकरण का 2300 करोड़ रूपया बकाया है। इसको भी तेजी कम किया जा रहा है।

प्राधिकरण की आर्थिक स्थिति सुधार में कारगर साबित हुई सीईओ की रणनीतिक प्रतिबद्धता

ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ एनजी रवि कुमार द्वारा प्राधिकरण की आर्थिक हालत सुधारने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया गया। वह विशेष रणनीति बनाकर आगे बढे। उन्‍होंने रेग्‍यूलर इनकम के स्रोत्र तलाशने शुरू किए। लीजरेंट एवं आय बढ़ाने वाली सेवाओं को प्रमुखता दी। बिल्‍डरों को प्राधिकरण द्वारा मनमानी छूट बंद की। बिल्‍डरों पर लगाम लगाई एवं फंसी हुई रकम को वसूलने की रणनीति अपनाई। निजी बैंकों से लिया गए ऋण की दरें अधिक थी। उनका ब्‍याज तेजी से बढ़ रहा था। कर्ज अदायगी में निजी बैंकों के ऋण को चुकता करने को प्राथमिकता दी। नई प्‍लाट स्‍कीमें निकाली। प्राधिकरण के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को टास्‍क दिए। उनके ऊपर नजर रखी। दूसरी ओर किसानों की समस्‍याओं पर लगातार काम जारी रखा। लीजबैक के ममालों का तेजी से निस्‍तारण की नीति अपनाई। विकास कार्यों की प्राथमिकता तय की गई। उनका मानना है कि विकास के लिए बेहतर सड़कों का होना जरूरी है। शहर में चौड़ी और बेहतर सड़कों का जाल बिछाया। प्राधिकरण के बेतहाशा खर्चों में भारी कटौती की। प्राधिकरण की बचत को एफडी में संरक्षित करने के लिए सरकारी बैंकों को चुनकर अधिक ब्‍याज प्राप्‍त किया।

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