स्पेशल स्टोरी

जनसरोकार के नाम पर पेशे का प्रदर्शन ? पुलिस, पत्रकार और सामाजिक संगठन-एनजीओ के सामने पेशे की मर्यादा को बनाए रखने की चुनौती !

Display of profession in the name of public concern, the challenge for police, journalists and social organizations-NGOs to maintain the dignity of the profession!

Panchayat 24 : उत्‍तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले गौतम बुद्ध नगर में तेजी से हो रहे विकास के साथ साइबर फ्रॉड और तकनीकी से जुड़े कई तरह के अपराध भी दस्‍तक दे रहे हैं। पिछले दिनों गौतम बुद्ध में पुलिस ने धर्म कांटों में चिप लगाकर तोल में हेरफेर करने वाले अंतर्राज्यीय गिरोह का खुलासा किया था। डीसीपी ग्रेटर नोएडा जोन साद मियां खान ने पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुए इस गिरोह के बारे में विस्तार से जानकारी दी। पत्रकार वार्ता में एक रिपोर्टर ने जिज्ञासावश पूछा कि इस गिरोह का कोई संबंध कुख्यात स्क्रेप माफिया रवि काना से है ? डीसीपी ने इंकार करते हुए जवाब दिया इस अभी तक की जाँच में ऐसे सबूत नहीं मिले हैं।

रिपोर्टर के पूछे गए सवाल की जिज्ञासा को इस संबंध में समझा जा सकता है कि गौतम बुद्ध नगर जिले में पुलिस ने नोएडा मीडिया क्लब के अध्यक्ष पंकज पाराशर, अवधेश सिसोदिया और देव शर्मा साहित तीन पत्रकारों पर रविकाना गिरोह के सक्रिय सदस्य के रूप में अपराधिक गतिविधियों में संलग्न होने के कारण कानूनी कारवाई कर जेल भेजा है। मामले में आरोपियों पर गैंगस्टर की कार्रवाई भी की गई है। हालांकि पुलिस इस कार्रवाई को अपराधियों पर की गई कार्रवाई बता रही है, किसी पत्रकार के खिलाफ नहीं।

पुलिस का दावा है की उसके पास इस संबंध में पर्याप्त सबूत है। इस मामले में पुलिस और पत्रकारिता जैसे दो प्रतिष्ठित पेशों की प्रतिष्ठा दाँव पर है। कौन सही है और कौन झूठा है, इसका फैसला अदालत करेगी। जिले के आला पुलिस अधिकारी मामले की गंभीरता को भली भांति जानते हैं। यही करण है कि डीआईजी रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में एक कमेटी पूरे प्रकरण की निगरानी कर रही है। कमेटी में कई अनुभवी एसीपी और इंस्पेक्टर शामिल हैं।

मामले की जाँच की शुरुआत में पुलिस का दावा था कि 18 संदिग्ध खातों में 22 करोड रुपए के गैर कानूनी लेनदेन का पता चला था। अधिकारी यह भी दावा कर रहे हैं कि है जैसे जैसे मामले की जाँच आगे बढ़ रही है, चौकाने वाली जानकारी मिल रही है। काले धन को सफेद बनाने के लिए कई फर्जी कम्पनियों को बनाया गया। अपराधिक तरीके से बनाई गई रकम को रीयल एस्टेट कम्पनियों में लगाया गया है। एक वरिष्‍ठ पुलिस अधिकारी का यह दावा है कि अभी तक की जाँच में 160 करोड़ के गैर कानूनी लेनदेन का पता चला है। पुलिस सूत्रों की माने तो जाँच की आग कुछ और  सफेदपोश लोगों तक भी पहुंच सकती है।

इस प्रकरण में घटनाक्रम तेजी से घट रहा है। मंगलवार को पुलिस ने मीडिया प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष पंकज पाराशर और उपाध्यक्ष रिंकू यादव के खिलाफ फर्जीवाड़ा करने, नियमों का उल्लंघन कर फर्जी हस्ताक्षर करने और मीडिया प्रेस क्लब के लेनदेन में गड़बड़ी करने का भी आरोप है। प्रेस क्लब के ही एक पत्रकार की तहरीर पर पुलिस ने यह मामला दर्ज किया है। शिकायतकर्ता के नाम से एक पोस्ट भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसमें उसकी ओर से जान माल को खतरा बताते हुए सुरक्षा की मांग की गई है।

सवाल उठता है क्या पेशे के आधार पर पुलिस, पत्रकार या फिर सामाजिक कार्यकर्ताओं को पेशे की मर्यादा लांघने की छुट मिल जाती है ? दरअसल, अभी तक पुलिस और कुछ पत्रकारों के बीच दिख रहे मामले में सामाजिक संगठन और एनजीओ गई भी एंट्री होती हुई दिख रही है। सूत्रों की माने तो रवि काना और पत्रकार गठजोड़ की जाँच के तार कुछ एनजीओ से जुड़ रहे हैं। पुलिस प्रकरण में एनजीओ की भूमिका की भी जाँच कर रही है।

वैसे तो गौतम बुद्ध नगर में जनसोकर और मानवीय आधार पर असहायों और कमजोर लोगों की सहायता के नाम पर बने सामाजिक संगठनों और एनजीओ की पिछले कुछ सालों में बाढ़ सी आ गई है। ऐसे में एनजीओ एवं सामाजिक संगठनों की अपराधिक गतिविधियों में शामिल होने की चर्चा चिंता का विषय है। शायद यही कारण है कि चर्चित सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर दिलीप मंडल ने टवीटर पर एक पोस्‍ट कर पर्यावरण के नाम पर जायज और नाजायज आधार पर विकास कार्यों को बाधित करने वाले एनजीओ को पर्यावरण आतंकवाद का नाम दिया है। गौतम बुद्ध नगर में भी कई बार ऐसे एनजीओ और सामाजिक संगठनों के कारण विकास कार्य बाधित होने की खबरें आती रहती हैं।

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